कुमारदास कृत जानकीहरण महाकाव्य - एक समालोचनात्मक अध्ययन | Kumardas Krit Janakiharan Mahakavya- Ek Samalochanatmak Adhyayana

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Kumardas Krit Janakiharan Mahakavya- Ek Samalochanatmak Adhyayana by मृदुला त्रिपाठी - Mridula Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[0] मनीबियो जले भरी उने व्वौव्टधर्मीं डी स्वीकाया डै1* अन्त साक्ष्य भी- कुमारठास को बौद्ध धर्म सिद्ध करते हैं। फिर भी ते उदार तथा सब धर्मो क्ता आदर करते द। समय लिर्धाखणः- सखंस्क्त के अन्य कवियो की डी भा ति कुमारदास का समय निर्धरण भी विभिल्ल मतभेदो ज व्खिर्णं ड, विद्धालों नें कोड मतैक्य लीं डे! महाकवि कुमारदास के समय के सम्बन्ध मे विविध विह्लानों के मत निम्नलिखित ड डा० क्रीथ का कथन है कि महयकवि क्टुमारटास काणिकावृत्ति (लगभग &७०ई०) से चर्वित यै जबकि दुसरी ओर तवामल (लगभग ৫০০০) उन्हें अवश्य जानते रहे डोगे जिन्होजे कुमारदास की कविता मे प्राप्तढ्लाल वाले खलु' के यदादि में प्रयोग की निन्‍्दा की है।* कीथश महोदय के इस मत के सम्बन्ध मे यदा ४ उद्धत जाजकीडरण की भ्रुमिका 2০ ৩ व्याख्यावजर एव सम्पादक आचार्य भालचन्द्र पाण्डेय 1 ও क्ञट्यालकार सुनवृत्ति, 9/१/७




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