रवीन्द्र दर्शन | Ravindra Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.44 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम संस्करण की भूमिका पुस्तक स्वयं अपनी परिचायक हे । रवीन्द्रनाथ की कृतियों की लोक- प्रियता यह दर्शाती हे कि आत्मा के साम्राज्य में न पूर्व है और न पश्चिम तथा उनकी रचनाएं सामान्य आवश्यकता को पूरा करती हूं और विद्व की मांग को. संतुष्ट करती हैं । प्रदन हैं कि विश्व की मांग कया है ? और वह कंसे पूरी हो सकती हैं? इस पुस्तक में इस प्रश्न का उत्तर देने का मैंने प्रयत्न किया है । ... रवीन्द्रनाथ टेंगोर के दर्शन और संदेश की व्याख्या ददन धर्म और कला के भारतीय आदर्श की व्याख्या है जो उनकी कृतियों में अभिव्यक्त हुआ है । हम नहीं जानते कि यह धड़कन रवीन्द्रनाथ के अपने हृदय की है या भारत का हृदय हूं जो इनमें स्पन्दित होता हू । उनकी कृतियों में भारत ने अपने खोये हुए उस दाब्द को पाया है जिसकी उसे खोज थी । भारतीय और धमें के ये परिचित सत्य जिनका गलत मूल्यांकन करना अपनी ही जन्मभूमि में एक फंशन हो गया था इन कृतियों में ऐसे ऊंचे आदर और गहरी भावना से प्रतिपादित किये गए हैं कि वे एकदम नये प्रतीत होते हैं। भारत की जिस आत्मा से रवीन्द्रनाथ प्रेरणा पाते हैँ उसीके परिचय ने मुझे इसकी व्याख्या करने में सहायता दी है । इस पुस्तक के विरोध में यह कहा जा सकता हैं कि लेखक वहां एक सुनिश्चित अ्थे को ढूंढ़ने का यत्न कर रहा हैं जहां कोई अर्थ है ही नहीं और रवीन्द्रनाथ के विचारों से अपने विचारों को उलझा रहा है । यह दोषारोपण एक ऐसा विराट प्रदन पेदा कर देता है जिसकी चर्चा इस भूमिका की सीमा में करना कठिन हैं । किन्तु यह याद रखना चाहिए कि रवीन्द्रनाथ पद्य लिखते हैं जबकि यह पुस्तक गद्य में है । पद्य अनिश्चित और सुझावमूलक होता है जबकि गद्य सुनिश्चित और व्यंजनात्मक । मैंने यहां कवि के संदिग्ध सुझावों को निश्चित कथनों में बदलकर उन्हें आधार देने का उनके परिणाम निकालने का और जहां आवश्यक लगा वहां पृष्ठभूमि देने का यत्न किया है । यह पुस्तक रवीन्द्रनाथ के दर्शन को उसीके आधारभूत सिद्धान्तों के प्रकाश में व्याख्या करने का प्रयत्न हे । में यहां इस बात का उल्लेख करना चाहूंगा कि कविवर ने अपने दर्शन के सम्बन्ध में इस व्याख्या की सराहना की हू । न पद और पश्चिम में राष्ट्रीयता के सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ के विचारों के मूल्यांकन के बिना यह पुस्तक पूर्ण नहीं होती अतः इस विषय पर उनके विचारों का विषलेषण हमने चौथे और पांचवें अध्याय में किया है । इस मूल्यांकन में हमने
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