मनोरंजन पुस्तकमाला कर्त्तव्य | Manoranjan Pustakmala Karttavya

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Manoranjan Pustakmala Karttavya  by बाबु रामचन्द्र वर्म्मा - Babu Ramchandra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) ই জী লাহলন में ईश्वर ने उन्हें बुरे कामौ से बचाने के लिये: दी थी | दूसरी बार जब वह बुरी वासना मन मे उत्पन्न होती है, तव उसका विरोध पहले की अपेक्ता कुछ कम हे! जाता है। इसी प्रकार मनुष्य को धीरे धीरे बुरी बातों का अ्रभ्यास पड़ जाता है । दुष्कस्मं मं सखव से बड़ा दोष यह है कि उससे और दूसरे दुष्कस्मी की खष्टि आर बुद्धि होती है। पर भनोदेवता का कभी अंत या नाश नहीं सकता) हम उसकी अबज्ञा कर सकते हैं, पर उसकी हत्या कभी नहीं कर सकते । यही करण हे कि प्रत्येक चुरा काम करने के समय हमारे मन को भीतर ही भीतर न जाने कान कचोटता है । हमे उसका अनुभव अवश्य होता है, चाहे हम उसकी परवा कर ओर चाहे न कर। ओर परलोक तो दूर रहा, द्धा इख लापरवाही का फल हमं इसी लोक मं भुगतना पड़ता है । मनोदेवता अविनाशी और सर्वेव्यापी है | वह मनुष्य को आत्म-संयमी वनाता है औशर चुरी वा सनाओ तथा विचारों को रोकता है। उसकी आश्ाओं का पालन करना तथा अपनी इंद्रियों आर वासनाओं के अपने वश में रखना घत्येक मयुप्य का परम कर्तव्य है। श्चार इसी कन्तेव्य के पालन से . मलुष्य में वास्तविक मलुष्यत्व आता है। इस प्रकार महुष्य सब प्रकार के पापों ओर दोषों से बचकर अपने बल पर खड़ा होता है ओर यथासाध्य मानव-जाति का फल्याण




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