गुजरती साहित्य का इतिहास | Gujrati Sahitya Ka Itihas

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Gujrati Sahitya Ka Itihas  by ठाकुर प्रसाद सिंह - Thakur Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुजराती ओर उसका मूल ३ पृष्ठ१९९-२०० में एक सुझाव दिया है कि संभवत: 'गुज्जर' दाब्द में अरबी का प्रत्यय आत ज्‌डने पर ही गुजरात बना है, जसे जार्हिर से जाहिरात । जातः प्रत्यय स्थल का भी सूचक है, जंसे ठाकोर से ठकरात; अथवा भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए प्रयुक्त अरबी की अन्तिम ध्वनि भी यह हो सकती है, जैसे वकील से वकालत । गुजरात की भाषा के लिए गजरात' शब्द का प्रयोग १० वीं शताब्दी में अबू ज़ईद, अल्मसूदी तथा अल्बरूती नामक ३ अरब-या त्रियों द्वारा किया गया है, किन्तु इस भाषा के लिए ग्जराती' शब्द का प्रयोग, जहाँ तक ज्ञात हुआ है, सर्वप्रथम प्रेमानंद (१६४९ से १७५० ई० तक ) ने अपने दशम स्कंथ में किया है। भालण (१४२६-१५०० ई०) इसे अपभ्रंश या गुजर भाषा कहता है; मार्कण्डेय (१४५० ई० ) अपने प्रक्रिया सवस्व' मं दस गौजंरी अपभ्रंश की संज्ञा देता है; पद्दनाभ (१४५६ ई० ) इसे प्राकृत, नर्रासह मेहता (१४५० ई०) अपभ्रंश गिरा तया अखा (१६५०) इसे प्राकृत अथवा भाषा नाम से पुकारता है। प्रेमानंद का समकालीन बलिन पुस्तकालय का पुस्तकालयाध्यक्ष इसे गुजराती कहता है। इस प्रकार लगभग १७०० ई० में इस भाषा के लिए -ग्‌जराती' दाव्द का प्रयोग प्रचलित हुआ। विद्वानों ने उत्तर भारत की अनेक भाषाओं को उस परिवार के अन्तगंत माना है, जिसे भारोपीय' परिवार कहते है । इस परिवार में कुछ तो ग्रीक- लेटिन आदि यूरोपीय भाषाएँ है और अवस्ती के समान कुछ एशियाई भाषाएँ हैं। इस परिवार की भारतीय शाखा का नाम भारतीय-आर्य-परिवार है, जिसमें वदिक संस्कृत, उच्च साहित्यिक संस्कृत, पाली, प्राकृत तथा अपश्रंश आदि प्राचीन उत्तर भारतीय भाषाएँ सम्मिलित हैं, साथ ही कालान्‍्तर में इन भाषाओं से विकसित भाषाएँ भी है, जसे गजराती, हिंदी, बंगला, मराठी आदि । ये आधुनिक भारतीय भाषाएं नवीन भारतीय आये भाषाएँ कहलाती ह्‌ । उपयुक्त भारतीय आर्यं भाषाओं का विकास तीन सोपाना मं विभक्त है- (१) प्राचीन भारतीय आयंभाषाएँ, जैसे वंदिक भाषा, वेदकालीन बोलचाल की भाषा, संस्कृत आदि; (२) मध्य भारतीय आयं भाषाएँ, जसे पाली, प्राकृत तथा अपश्रंश; (३) नवीन भारतीय आयं भाषाएं, जो उत्तर भारत




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