महाश्रमण महावीर | Mahashraman Mahavir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १ )
भगवान महावीर के पिता राजां सिद्धायै की छोटी बहिन का भिषा
हुआ ই | जब भगवान महावीर का जध्मोत्पव हो रहा था, तब यह
कुण्डपुर आया था श्रौर कुण्डपुर के राजा सिद्धाधे ने इनदर के तुल्यं
पराक्रम को धारण करने अले इस प्म मित्र का थच्छा सत्कार
कियाथा) इसकी यशोदया रानी से उत यशोदा नामि की परत्र
पुत्री थी। जितशत्रु को यह तीत्र भावना थी कि वह अनेक कन्या
सहित यशोदा का विवाह भगवान सहाभीर के सांथ सम्पन्न होता देखे |?
( सर्ग ६६, १-८)
मद्दाराज सिद्धाथे ने अनुकूल समय देख जब भगवान के
विवाह की चर्चा चलाई, तब उन वीर प्रभु ने अत्यन्त
नम्नतापूर्वक निवेदन क्रिया, “हमारे पूर्व तीथेड्डर पार्श्वनाथ हो चुके
हैं। उन्दने विवाह के बन्धन को इसलिये स्वीकार नहीं किया कि
उनकी आयु केवल सौ बषे थी। उनके पूर्ववर्ती तीर्थक्कुर नेमिनाथ ने
भी ब्रह्मचय त्रत लकर संसार के बिषयों से अपने मन को विमुक्त बना
स्व-पर कल्याण किया । मेरी आ्रायु केबल ७२ बे है। इस अल्प
जीवन में विपयों की दासंता का परित्याग कर मैं पूर्ण अद्धाचय की
साधना करना चाहता हूँ। अब मैं कर्म शबुओं का नाश कर से
सुख ओर शांति को प्राप्त करना चाहता हूँ; इसलिये आपके हारा
प्रदर्शित राग के पथ पर प्रवृत्ति करने में मैं असमर्थ हूँ ।” वे नारी
जाति को माता, बहिन और सुता ॐ सिवाय अन्य रूप में नहीं
देखते थे । इससे वे बालत्रक्ष चारी रहे |
भगवान के जन्मप्र कुल्डली का परिशीलन कर ज्योतिष शास्व्रक्ञ
भी कहते हैं, कि उनके विधाह का योग नहीं था। उसके মিলা की
कल्पना श्रागम के विपरीत है।
वैरस्य जागरण :--वर्धमान मगवाने की पिषयों ॐ प्रति धिरक्ति
विशेष रूप से वर्धसान हो रही थी और वे आध्यात्मिक चिंतन द्वारा
प्रचनागोचर घुख का भी आस्थादम कर रहे थे । धीरे-धीरे ३० दपं भीक
गये । भगहने शस का भावमन हुआ । एक दिल उन भ्रषुं की हृष्टि
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