दर्शनानन्द ग्रन्थ संग्रह | Darshnanand Granth Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Darshnanand Granth Sangrah by स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती Swami Darshananand Sarswti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती Swami Darshananand Sarswti

Add Infomation AboutSwami Darshananand Sarswti

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यज्ञ प्रिय पाठकगण ! आजकल यज्ञ का अथ शास्त्र से अपरि- चित होने के कास्ण वलिदान अथवा जीव हिंसा के लेने लग = न ओर पु ¢ गये हैं और इन मनुष्यों से पूछा जाता है कि तुम यज्ञ का अर्थं हिंसा कहाँ से लाते हो ? उस समय वह वाममार्गियों की क्रिया और उनके बनाये अथवा अंथों में मिलाये हुए वाक्य उपस्थित करते हैं, जिनमें कहीं केवल परिच्छेद और समास को ही बदल कर मनुष्यों জী সাবি में डाला जाता है । अतः आज हम यज्ञ के विपय पर विचार करना चाहते हैं, जिससे सर्व-साधारण को इस सर्वोपयोगी कायै की उत्तमता ज्ञात हौ जावे । संसार मे इसका भचार हो जवे अर जो मनुष्य जैन वौद्धादि विना सममे केवल बाममार्गियों की क्रिया तथा पुराणों की गप्पों के भरोंसे पर इस स्वोपयोगी काम की निंदा कर रहे है वह अपनी भांति को जान कर इसके अतिकूल होने के स्थान पर सहायक हो जवं | जो वेदों की निन्दा के कारण नास्तिक काते हैं, वे फिर वर्णाश्रम धर्म को मानकर आस्तिक हो जायें तथा संसार से फूट का भंडा उखड़ कर प्रेम का फण्डा गड़ जवे । प्रिय पाठकों ! यज्ञ” शब्द यज धातु से निकला है, जिसका अर्थं देवपूजा; संगत्ति करण और दान का है । आज कल जो मनुष्य यज्ञ का अर्थ बलिदान ले रहे हैं, वह केवल देवपूजा के लिये बलिदान करना इस शब्द का ক্স वताते हैं और देवपूजा से खर्ग की प्राप्ति बताई जाती है। अव देखना यह है कि देवपूजा से स्वं की ्राम्ति होती है या




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now