तुलसी ग्रंथावली | Tulsi Granthawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.38 MB
कुल पष्ठ :
542
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना | : श्श्
इस'लेख में. गोस्वामी तुलसीदासजी के एक नवीन “चरित” का
वृत्तांत लिखा है और उससे उद्धरण भी लिए गए हैं। लेख इस
प्रकार है---
“गोस्वामीजी का जीचनचरित उनके शिप्य मद्दासुभाव महात्मा
रघुचरदासजी ने लिखा है। इस श्रंथ का नाम “तुलसीचरिति” है।
यह बड़ा ही वृदददू ग्रंथ है । इसके मुख्य चार खंड हैं-( १) अवध,
(२) काशी, ( ३) नर्मदा श्औौर ( ४ ) मथुरा । इनमें भी अनेक उप-
खेंड हैं । इस ग्रंथ की संख्या इस प्रकार लिखी हुई है-- चौ० पक
लाख तैंतीस हज़ारा। नो से बासठ छुंद उदारा” । यह ग्रंथ महाभारत
से कम नहीं है। इसमें णोस्वामीजी के जीवनच रित-विषयक सुख्य
मुख्य चृत्तांत नित्य प्रति के लिखे हुए हैं। इसकी कविता झत्यंत
मघुर, सरल श्ौर मनोर॑जक है। यह कहने में अत्युक्ति नहीं होगी
कि गोखामीजी के प्रिय शिष्य महात्मा रघुबरदासजी विरचित इस
झ्रादरणीय ग्रंथ की कविता श्रीरामचरितमानस के टक्कर की है शरीर
यह “तुलसीचरित” घड़े महच्व का अंथ है । इससे प्राचीन समय ,
की सभी बातों का विशेष, परिज्ञान दोता है। इस माननीय बट ग्रंथ ,
के 'झवध खंड” में लिखा है कि जब श्रीगोस्वामीजी घर से विरक्त हो
कर निकले, तो रास्ते में रघुनाथ नामक एक पंडित से सेंट हुई श्रौर
गोस्वामीनी ने उनसे श्रपना सब चूत्तांत कहा :--
गोस्वामीजी का वचन :--
चौपाई ।
काल, श्रतीत यमुंन तरनी के । रोदन करत चलेईुँ मुष फीके ॥
दिय बिराग तिय शपमित बचना । कंठ मोद बैठी निज रचना ॥
खींबत त्याग' विराग दटोही । मोह गेह दिखि कर सत खसोद्दी ॥ '
मिरे जुगल बल बरनि न जाही । स्पंदन व्यू -खेत वन माही ॥
तिनिर्ँ दिशा झपथ महि. काटी । श्राठ कोस मिखिरन की पाटी '॥
पईुंचि ग्राम . तर सुतरु रसाला। बेंठेई 'देखि भूमि खुविसाला ॥
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