ब्रह्मविलास | Brahmavilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शत्रअशेत्तरी, ११ देखत देव कदेव समै जग राम प्ररोधध्ररैउरदो है। ताहि विचारि विचक्षन रे मन ! है पल देखु तो देखत की है॥ १३॥ कक्रित्त, शि रीं सुनो राम चिद्रानंद कहोज सुबुद्धि राजी, कह कदा बेर बेर नेकु “कीड़ि छाज़ है । केसी लाज़ कहो कहां हमर क्र जानत न, हमें इ- हाँ इंद्रनिक्रो तिषे सुख राज है॥ अरे मूह विषै सुख रये त्‌अनन्ती वेर्‌, अज हूँ अघाय्ो नहि कामी शिरताज है। मानुष जनम प्राय आरज सुखेत आय, जो न चेते हंसराय तेरी ही अकाज है॥ १४॥ सनो मेरे इस-एक-कात-हमस-सांची कहे, कहा क्या ল नाकं फौउ भरुखहू गहतु हे । तुम जो कदत देह मेरी अर नेकं रखा, कही केस देह तेरी राखी ये रहतु है ॥ जाति नारद पाति नांद्ठि रूपरेग मांति नाहें, ऐसे झूठ मृष कौउ इंटोहू कहतु है । चेतन प्रवीनताई देखी हम यह तेती, जान हो जु जब ही ये दुखको सदत्‌ है ॥ १५ ॥ सुनो जो सयाने नाहु देखो नेकु टोटा लाह, कीन विवाह, আছি ऐसे लीजियतु है । दश घोस॑ विपैसुख ताको कहो केतो दुख, परिक नरकश्ुख कोर 'सीजियत्ु है । केतो काल बीत गयो अजहू न छोर ख्यो, कहूं तोहि कष्टा भयो ठेस रीक्षियतु ह । आपु दी विचार देखो कदिवेको कौन 'लेखो, आवत प्रेबो तति कदय कीजियतु' दै ॥ १६॥ এ ति -न-मेसे कक्षो सान -बहुतेरो कथो, मानेत न तेरो गयो कहिये । कोत रीक्षि रीक्षि र्थो कौन बश्च बृञ्च रद्यो, णी ऋते तुमे मासौ कहा कटी चद्िये । एरी सेशे रानी तोसों , क्न है-सयानी ससी, ए तौ चापुरी निरानीत्‌ न रोस गहिये । { १) दिन. (२ ) दीन संचोधन।




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