मलूकदास जी की बानी | Maluk Das Ji Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.59 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रेम ऊ
तोजी और निमाज न जानूँ, ना जानूँ धघरि रोजा ।
बॉग जिकर तबही से बिसरी, जबसे यद्द दिल खोजा ॥ ४ ॥
कहें. मलूक अब कजा* न करिहीँ, दिल दी सेँ दिल लाया ।
सकका हृज्ज हिये में देखा, पूरा सुरसिद॒ पाया ॥ ५. ॥
प शब्द 2 ||
दर्द-दिवाने बावरे, अलमस्त फकीरा ।
पक अकीदा' ले रहे, ऐसे सन-धीरा ॥ १ ॥
प्रेम पियाला पीवते, बिसरे सब साथी ।
आठपट्र याँ खूमते, उ्योँ माता दाथी ॥ २ ॥
उनकी नजर न आवते, कोष राजा रंक ।
संघन तोड़े मोह के, फिरते निदसंक ॥ ३ ॥
साहेघ मिल साहेघर भये, कछु रददी त तमाईइंह।
कहे मलूक तिस घर गये, जहेँ पवन न जाई ॥४॥
॥ शब्द ४ ॥
मेरा पीर निरंजता, में खिजमतगार ।
ठुद्दी तुद्दीं निस दिन रटीं, ठाढ़ा दरबार ॥१॥
मददल मियाँ का दिलहिं में , ओ सददजिद कांया ।
छूरी देता ज्ञान की, जबतें लो लाया ॥ र॥
तलवीं फेरे ँ प्रेम की, दिया करों निवाज ।
जहेँ तहूँ फिरों दिदार को उसही के काज ॥ेप
के मलूक अलेख के, अब हाथ बिकाना ।
नादी खबर वजूद” की में फकीर दिवाना ॥४॥
कि
“अर,
(थे भाग ! (९) चही हुई नमान पढ़ना। ते अवीत। ठ सनक, चाह ।
हैँ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...