जैन हितैषी मासिक पत्र भाग-8 | Jain Hitaisi Masik Patra Part-8
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
692
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१9
होगे | जनेउकों हम कंघेपर रखते हैं । इसका आशय यह है कि
हम उक्त तीथकरोके कहे हुए चाक्योंको अपने कंघेपर विचारके लिये
रखते हैं और उनपर नित्य अमल करते हैं । यह इस बातका सूचक
है कि, हमारे तीमेकरोंने जो कुछ उपदेश दिया है. उसको मानने
भर उसपर अमल करनेके लियं हम तयार है
नेनियाका एक आर आकार मधबविन्दकका है। भारतवषक
प्राय: प्रत्येक भागके नेनमन्दिरोमें उपड्के लिये बड़े ९ कमरे
रहते हैं । ओर उन कमरोंकी दीवालॉपर बढतसी तसवारें रहती
हैं | मैं जब आठ वर्पका बालक था. तब अपने पिंताके साथ जैन-
साधुजोंका उपदेश सुननेके जाया करता था । एक दिन हम
वहां आधा घंटा पहिले पहुंच गये, इसलिये यथेष्ट समय मिल
जानेसे मैंने दीवारोंकी तसचीरोंपर बड़े श्यान ओर साकसे नजर
डाली । एक तमसबीर जिसने से रे स्यानका विजेपरूपस आकर्षित
किया. इस प्रकारकी थी. एक आदमी कुएके बीचम उसके
पास ही उगे हुए शास मद: ग्हा कण्के किनारे एक
बडा हाथी खड़ा दुआ है, नी लटके हुए जादमीकों नहीं पा सक-
नेकें कारण जपनी सूंड बूक्षकों इसलिये हिला रहा हैं कि
पटक डू । कुण्की दीवारॉपर नीचकी आर चार सांप, लटक
हुए मनुप्यकों काटनेकी गरजमे ऊपरकों फण कर रह हैं । नीनें
नलीमें एक और बड़ा सांप उस मनुप्यकी ओर मुंह फैलाए हुए
हैं | मनुष्य जिम झाखाकों पकड़कर लटक रहा है, उसे एक काला
+ दिगम्चर सम्प्रदायके जनऊकों सम्यरदयोन - ज्ञान-चारित्ररूप
रत्नन्रयका चिह माना हं । किसी आचायने उपयुक्त प्रकारसे तीन चौवीसि-
पाका प्रगट करनेवाला माना है या नहीं, हम कह नहीं सक़त 1
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