मुक्तिका | Muktika
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संवंरण
४1४४३
(४)
अब जब सखझाशा की इसने,
तरुण पृत्र का गूजा यह स्वर-
प्याय और अन्याय उभय का
इन्द्र आज भी हैं अजरामर !
(५)
में भी मानव हूँ, अब में भी
तरुण हुआ, माँ, मुझे विदा
पिता गए थे जिसपर, में भी
जाऊँगा अब उस बलिपथ पर [”
(६)
सुनकर उठी, आज फिर इसने
वजद्ध रख लिया अपने उर पर ;
रोके आँसू, गत पति की स्मृति;
विंदा किया सुत वीर सजाकर ।
(७)
देख रही यह शुन्य दृष्टि से---
बलिपथ सम्मुख , सुत है पथपर !
देख रहे हो तुम इसको
श्रो केविं के उर के करुणाकर !
(८)
हं यह् कठिन परीक्षाक्षण, तम
द्रवित न होना इस अवसर पर !
धय न इसका बहे तुम्हारी
करुणाकालिन्दी में मिलकर !
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