संसार का संक्षिप्त इतिहास [भाग 1] | Sansar Ka Sankshipt Itihas [Bhag 1]

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Sansar Ka Sankshipt Itihas [Bhag 1]  by श्रीनारायण चतुर्वेदी - Shreenarayan Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कालान्तगंत प्रथ्वी ध्वी की उव्यत्ति और आयु के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों ने, गत पचास वर्षों में, अत्यन्त सक्षम और कौतृहलजजक कल्पनाये' कर डाली हैं। परन्तु उनके वर्णन मं गणित एवं भौतिक शाखत्रसम्बन्धी अत्यन्त सूक्ष्म सिद्धान्तों की आवश्यकता होने के कारण उन कल्पनाओ के सार को भी यहां देने की ढिठाई हम नहीं कर सकते । वास्तविक वात तो यह है कि ज्योतिप एवं भौतिक विज्ञान ने अभी तकः इन स्पष्ट कल्पनाओं से निक्रल कर अगली सीढ़ी पर कदम ही नहीं रखा है | अब तो प्रथ्वी की आयु का अधिकाधक अन्दाज़ा लगाने की ओर ही प्रबृत्ति हो गई है और स्व॒तन्त्र ग्रह के रूत में, सूर्य की प्रदक्षिणा करनेवाले, दृत्य- निरत इस प्रथ्वीपिए्ड का अस्तित्व भी लगभग २,००,००,००,००० वर्ष का समझा जाने लगा है| बहुत संभव है कि वह इससे भी बहुत पहले विद्यमान रहा हो; परन्तु हमारे होश उड़ाने के लिए--हमको सवबंथा हतवुद्धि करने के लिए--तो यही संख्या आवश्यकता से अधिक है। । ` स्वतन्त्ररूप से अस्तित्व में आने के पूर्व सर्य और उसकी परिक्रमा करनेवाले पृथ्वी आदि ग्रह, सभी फैले हुए. द्रव्य के महान्‌ मेंवर के रूप में आकाश में तेज़ी से घूमते रहे होंगे | दूरवीक्षण-यन्त्र-दारा देखने पर आकाश में इसी प्रकार के तेजोमय द्रव्य के बादल--क्ुण्डलाकार नीहारिका--स्थान स्थान पर एक केन्द्र की प्रदक्षिणा करते हुए दृष्टि गोचर होते हैं । बहुत-से खगोल-शाखज्ञों की यह धारणा है कि सूर्य और उसकी परिक्रमा करनेवाले ये ग्रह भी, किसी समय, इन्हीं के समान कुंडलाकार थे, और कालान्तर में एकत्र हो, इन्होने यह आधुनिक रूम धारण कर लिया है। अनन्त थयुगयुगान्तरों तक इस प्रकार उनके एकत्र होने की क्रिया जारी रही और उस समय, जिसके अंक हमने दिये ই, দুর্গা कौर चन्द्रमा प्रथक्‌ रूप से दिखलाई पड़ने लगे | उस समय ये दोनों अपनी घुरियों पर आज- कल की च्पेक्ला अधिक तेज़ी से घूमते थे और सूर्य के अधिक निकट होने के कारण उसकी प्रद्नषिणा भी, वर्तमान काल की अपेक्षा, अधिक तेज्ञी से समाप्त करते थे | तव शायद इनके घरातल भी अत्यन्त प्रज्बलित अथवा पिधले हुए थ। उस समय सूर्य भी बढ़े आकार का ओर बहुत बड़ा अग्नि का पिएड था । ५




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