और अंत में | Or Ant Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.95 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बार अंत में.... हे १७
कोई पत्रिका न होने के कारण मेरा मन डरता है ।
घादल भराकाश में भाचसिक कथाओं की तरह छा गये है श्रौर उनमें
बिहार के पूर्णियां शिलें के नक्शे धन-विगड़ रहे है ।
मेंदक चारो भोर टर्रा रहे है जैसे नये कवि रचना-प्रक्रिया पर चर्चा
कर रहे हों ।
है लक्ष्मण, तालाव पानी से लबालब भर गये है, मानों बादलों ने
इनकी रायलटो का पूरा हिसाव कर दिया हो ।
देखो, वादलो में कमी-कभी बिजली चमक जाती हैं, जैसे २-४
महीने में किसी पश्चिका में कोई भ्रच्छी कविता दिख जाती हूँ ।
हें सच्मण, ज़रा सावधानी से चलो | घास में साँप छिपे है, जंसे
छदमनाम के पीछे लेखक छिपा रहता हैँ जो दिखता नहीं हैं, सिर्फ
काटता हूँ !
उधर सुनो । एक मेंढक बड़ी प्रसप्नता से खूब ज़ोर से टर्रा रहा हूँ
जैसे किसी लेक को पुस्तक माध्यमिक कत्ताझों के पाठ्य-क्रम में आ
गयी हो ।
पक्नी घोंतलों ते सिर निकाल कर बार-बार भॉर्क रहे है जैसे बड़े
लेखक लिखना छोड़, उत्सुकता से प्रतिनिधि मंडली में विदेश जाने का
मौका ताक रहे हों ।
है भाई, यह पच्षी वृज्न से उड़ कर यहाँ घर की मेहुराव में बैठ गया,
जेंमे परम झाचलिक *रेग' मौसम ख़राब देख कर, ग्राम-जीवन से उठ कर.
शहरी मध्यम वर्ग पर थ्रा गये है ।
लचमख, या. न की कि. लग
है लद्मणण, < '... “रहा है! ऐसा लगता हैं
न न पर लेख लिख कर,
चर जाने की महत्वा-
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