सरोकारों के रंग | Sarokaron Ke Rang
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिंदू समाज, स्वामी दयान द शौर आ्राज की चुनौती 17
चायव हैं। यहा तक कि मध्ययुग के भवित भश्रादालना का मूल स्वर भी सौम्य,
समभौतावादी और पलायनवादी था, न कि त्रातिकारी, विद्रोही भौर सुधार-
वादौ । वैसे भी इस सता झौर प्रचारका क पीछे उनके झनुयाय्रियों न नई-नई
घामिक जागौरें बनाली और जो कूडा ककट साफ करने गये थे उनके नाम पर एक-
एक घूरा और बढ गया (हजारी प्रसाद द्विवेदी) । कुल मिलाकर इस पूरे काल से
हिंद्दू जाति के क यो पर पुरोहित बग सिंदवाद के बूढें की तरह सवार रहा और
उसकी ग्राँंलो पर रूढियो और क्मक्राण्ड कौ काली पटिट्याँ चढी रही।धम
केमक्राण्ड मे सिमिट श्राया और सामाजिक जीवन रूृढ़ियों मे । हिंदू-समाज
आत्मसुरक्षा के लिए एक खोल मे व द हाक्र शायद विनाश श्रीर विधटन से
बच गया लेक्नि उसके विकास के रास्ते रुक गए।
यही कारण है कि जब मुगला वा पतनकाज आया ओर राजपूत, मराठे शौर
जाट शदितशालोी हुए ता वे इस श्रवसर का ९ निक भी लाभ न उठा सके । मराठा
कृपका का उद्*व महाराष्ट्र के पण्डिता से पही देखा गया । उनवे शासनकाल में
कला और सस्कृति के नाम पर कुछ भी न हा सका। और जब श्रग्रेज श्राए तो
एक एक करषे ये सभी हि द्रु शक्तिया पराजित होती गह । इसका कारण भी दमे
हिंदु-समाज व धम की उसी व्यापक गिरावट में ढूढ़ना पडेगा जिसके चलते
सेनाथ्रा द्वारा जीती गई लडाइया केवल क्षणिक' महत्त्व रख सफ्ती हैं, साज्राज्यो
की श्राधारशिलाएँ नही वन सकती 1
अग्रेज़ी शासन मे पहला दौर ईसाइयत का चला। अ्रग्नेज श्रौर स्वय हिंदू
भी यह मानकर चलते थे कि हिंदुस्तान मे रखने जैसा कुछ भी नही है। नहा-
समाज इसी अस्वीकार के दौर की चीज़ थी हालाँकि वह भी बाद में कई मनो
वृत्तियों मे से गुज़रा। उसके वाद स्वय झग्रेजो ने हिंदू-घर्म और सस्दृति नी
छिपी हुई महानताओो का श्रवेषण शुरू क्या ओर स्वय हिंदुप्ना के भ्रात्मपौ रव
ने उहे ललकारा | तव सुधार स्वीकार वाले कई भा दोलत उठे तिहाने वुराइया
को भगाते हुए भा मूल रप मे हि दुत्व का स्वीकार करके उसे गौरव झौर पादर
दिया। रामइृष्ण सन्त थे लेक्ति उनके शिष्य विवेकानद ने जागति थ समाज-
सुधार हा मन्र फूका। एनीवीसेंट ने थियोसोषी के जरिये हिंदुत्व वो लगभग
पूण स्वीकृति दी और हिदुआओ को भपने घम पर गव बरन के लिए कहा । स्वामी
दयानद ने इन दोवदा से ही आगे वटवर पुराहितवादव वुरीतिया पर सीधा
झआाश्रमण क्या और सम्पूण विद्धतिया वा फ्लॉगते हुए सीधे वदिक शुद्धता का
आधार बनाकर भायसमाज का प्रचण्ड सुधारवादी झान्दाचप चलाया ।
स्वामी दयानाद सत नही ये, बोदा थे, “क्रमेडर ” था उनका व्यक्तिव
इन्ही वा रणो से झ्ाधुनिक इतिहास म भवे ला है। हिंदू घम उनसे पहले वरावर
ন্বছুশিন হীলা আমা था, दय्तां गया था। स्वामी दयानाद नईस देय भोौर
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