रूप के रंग हजार | Roop Ke Rang Hazar

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Roop Ke Rang Hazar by जय प्रकाश - Jay Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ “छा রত (3८ ; পা হারা আশ ने कुन्ली अब न्ट है ? वानि-विल ऋण हत्याओ ही रही थी - ढफारों में कक क्‍या উ € জজ अर्थी नेतो कम से काम करी गढुत #ग्यशाली था पी उसकी) ममगमताजयी मा ने अुराध्षित ढंय से ऑफूकघा-/विशेष बनाकर हकी में इक आशय स करा दिया था कनि উট की उपय ददे, यय्ठ पीकर उसके व्यक्तित्व की नियनार दे । ওই, ওটা পলা ৯ ও सूप बढ - नात्र अतलः 27 ` को गोव में पकरकर बड़ा दुआ / उसका साय- का स्णरा राबा ही बंदर गया / जरो कठ राजकुमार कोतः - जक कड चूत-बुत्र बनकर फीवनथापत करने पर' मजकर উজ? | अलतः तदः सच्यर्य करके নল জট জজলট শহর में कीसने मे कासयान को जाल है -- यद्मों লীন পভ दुरूयने की छोड उनाकङयकता नकी লাল यङुती -- अस णर अनिक श्रन्थ চি জউউ লি শট শুজ্ঞ दृष्टान्ता देने का मेरा केवल रूका दी आशय है कि- इस समान नैः हल्यः स्कारः न्याये सरणी व्रणा करके जी उस्ध बच्चे की -- जन्म त्लेने तक. का फ्रेका' वर्क देती । आज का विकसित समाज ননী ऊँचाई पर दुय गया के कि यह अध्यन्य रपसा न न्प खय लैत छा रहा ॐ / कुछ नो अकाय रोकने क नास यर ॐ - क्ष उनको (कच - लज्जा की सुय कनाम पर, व्वज़न्मा या শৌডেকটী को नाम पर' श्रुण रूव्यायें कर रुकी है ( कस्प प्रकार व्या समाज नहीं उस समय रब कीता तो शायव- कर्व का जन्‍म दी नहीं छुआ ढोता / जिन बच्चों की टा कल्याये' कमे सकी डे, गम्या विं दस धारके यर जन्म लेनी का अाजिकार नर्की हे ९ जब आव ङ्म उस कुकृत्य को नर्की रोक खकते तोडय बालक এটি जनम लेने ते येक कारे ठम आप वन कोते के ९ क्या हम - आप জী <र॑स्यारिक - छुटब স্টীল ভীম के है कया लनम रूस सीसार का नियन्ता बना ओतठे के ९ हझस रूप के- किठन दग ढो सक्ति के सकी परिकल्पना कोर्ड कवि की कर सकता ये अयोपेक्ति उपचेक्त सभी হেলা লা তাল तव भावनात्मक जुड़गब से ভী ওল ইউ / ঈললী योः कान्यात्मक ओशेली नेः त्निख বিন खवः के र इव्णर ` -- क्ष्से तवायो- करोड़ी रंग भी की सकता के । अब जाकर जु भी संतोष ठुका कि थह् शी्ीर | ब्ाब्य की >शवना के ওএল্সবহল हे / कक আব रे घूमते - घुसाते करिका क ~ स्वरूप की एण्य सो त्निया / त स्बरण्ड- काव्य के ह्य मेः- ऋष के रंग जार! की गेने धथ्मूण्ड - काव्य के কু न्ने प्स्सुत किया के / ज्समे छक सात আশ উ:/ पढत्ना कायाभ! के जिसमे रूप की अत्की।किक करकान के रूप তু ते किया जया के । खरा सरी- *खाव्वात्कार' के जिससे रूप न्मा सा करा से लोता है । काकि ने হট अपने विशेष




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