हिंदी शब्द सागर | Hindi Shabd Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76 MB
कुल पष्ठ :
1348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंतमेगा
प्राण । जीव ।
ऋंतसंभा-वि० * [ सं० अन्तः+मन ]
अनमना । उदास ।
झंतर्मझा--संशा पु० [स०] मन का
कुर या बुसई ।
अंतमूंख--जि० [ स» ) जिसका मुंह
मीतर की ओर शे | भीतर मुँदबाला |
जितका छिंद्र मीतर की भर हो । जैसे,
खतमुंख फोड़ा | क्ि० वि० भीतर की
ओर प्रवृत | जो आहर से हृ:कर भीतर
ही छोन हो ।
अंतर्याप्नी--वि० [ सं० अन्तर्याभिन् ]
१ भीतर जानेबछ | जिसकी गति
मन के भीतर तक हो | २ अतःकरण
में स्थिर होकर प्ररणा करनेषाल, । चिन्त
पर दबाव या अधिकार रखनेवःन्म ।
३ भीतर की बात जाननेवाला | मन
की बात का पता रखनेवाल। ।
सज्ञा पु ई.वर । परमात्मा । परमश्वर ।
अंतर्राष्ट्रीय “विश [ म~ श्रतगू+
राष्ट्रीय ] सप्तार के सत्र या अनेक राष््रा
से सबब েননাঙ্গা | জান্বযাগ্া |
अंतर्लेध -सशा पु० [स०] बह त्रिकश
क्षेत्र जिसके भीतर लव गिरा हो |
अंतर्तापिक[--सशा स्रो० [स०] बह
पहेली जिसका उत्तर उस पहेलो के
मक्षरो मं हः।
সানি --वि० [स०] मग्न । भीतर ।
छित्र हुआ | डूबा हुआ বা । विर्क/न ।
अंतर्वती--वि० स््री० [स०] १ गर्भ-
वती । गभिणों | ह्मिछा | २ লীনা |
अदर की |
भ्रत्बंणे- বা তুৎ [০] श्रतिम वर्ण
का । चतुर्थ वणु का । दर ।
झंतर्व॑र्ती--वि० [ অন্বনাওিনু]
भीतर रहनेवारछू | ३२. अन्तर्गत ।
अन्तर्भुक्त
अंतर्वांशी--सशा पुं [ स] १
शल्ररे । २ पंडित । विद्धम् ।
१९
अंतर्विकार--सशा पुं० [ स० ] शरीर
का धर्म जेस, मू, प्यास, पीड़ा
इत्याहि ।
अंतर्वेगी ज्यर---सज्ञा पु [स०] एक
प्रकारका ज्वर जिसमें रोगी को
पस्तीना नहीं गाता ।
अंतर्वेदु-पु० [स०] [वि० अन्तवेदी |
१ देश जिसके अतर्गंत यशो की वेदियों
हो । २ गगा और यमुना के बीच का
देश । ब्रह्माबतं । ३. दौ नदियोके बच
का देश । दामात्र।
अंतर्वेदना--सशा खी° [ म ] श्रतः
करण की वदना! भीतरी या सान-
सिक्र कष्ट ।
खझंतर्वेंद्ी--वि०[ स० अतवंदीय ]
अंतर्वेंद का निबासो | गगा-यमुना के
दोआत में क्सनेवाल |
अतर्वेशिकृू-सशा पु० [ स> ] अत:-
पुररक्षक । ख्वाजा भरा।
अंतर्तित--वि० [स०] १. तिराध्टित ।
द्रतद्धान । गुप्त | হাসল | २ छिया
हुआ । अदृश्य ।
अंतशब्या--पक्ञा खा०[स०]१ मृत्यु-
शब्पा । मरनसाद । भूमिशय्या) २
इमरान | ससान। मरघटठ । ३ मरण । मृत्यु)
अंतश्छुदइ--तशा पु० दे० “अतरूठदः” |
अंतस्-सतञ्ा पु० [ स० ] अतःरण |
द्वदय ।
अंतसद--सशा पु० [ स० ] शिष्य |
त |
श्र॑तखमय--पा पु° [ म० ] मत्यु-
काल |
अंतस्तख्--सशा पु० [ स° ] शरीर
का मीत्तरौ या मध्यवती स्वमन | मन |
अंतस्त(प्-सज्ञा पुं० [ स० ] লান-
सिकर कद |
अंतस्थ--व्रि० [ स० ] १, भीतर का।
मीवरी । २, बीच में स्थित । मध्य का।
मध्यर्ती । बीचवाछ। । ३ य, र, क,
ऋत:पटी
व, ये चारो वर्ण ।
अंतस्थित--वि० दे० “मतस्थ” |
अंतस्नान--संज्ञा पुं> [ स० ] अब-
भथ स्नान । वह स्नान जो यज्ञ समाम
हाने पर हो ।
अंतस्ललिल--वि० [ स> ] [ स्री०
अतस्तछिला ] ( नदी ) जिसके जल
का प्राह बाहर न देव पडे, भीत्तर
हा { ञमे अतस्तलिला सरसती ।
अतस्सलिला-खंश, खी° [ स |
१ सरस्वती नदी । २. फगू नदी ।
अंताराष्ट्रिय -बि०दे ० “अतरांद्रीय”'।
अंतावशी--सत्ा सत्री [स० अति]
अँगड़ी । आँतो का समूह ।
अंगवसायी--संशा पु०[स०] अस्थस्य
२ ग्राम की सीमा के बाहर“रहनेवाले ।
अंतावलायी--उंशा पु० [ स० 1१.
नाई । हज्जाम | २ हिंसक। चांड/छ।
अंतिम--ब्रि० [ स० ] १, नो अत में
हो । अत का आखिरी । सबके पी छेका
२ चरम । सबसे बरढकर | हृददरजे का ।
अंतिमेत्थम् -सश्ा पु० [सं० भि०
अ० अल्टिम -म ] विवादास्पद विषय
के निपमरे के लिए रक्खी हुं मतिम
मोग या दात।
अंतेडर, ऊतेदर%--सशा पु० [ सं*
सतःपुर ] मं पुर । जनानखाना।
अंतेवासी --सज्ञा पुं० [स० ] १
गुरुके स रहनेवाछा। शिष्य |
चेल, | २ ग्रमम के बाहर रहनेवाला।
चाडाल । मप्यज।
अतःकरथ- सज्ञा पु [स०] १.
वह मातरी इद्रे जो सकर, विकय,
निश्वय, स्परण तथा दुश्खादि का
अनुभव करती है । मन । २. विवे$ ।
नैतिक बुद्धि ।
अंतःफ्टी--सरा ज्री० [स० ] १.
कक्षी चित्रपट मे नदी, पंत, मगर
आदि का दिखलछाया हुआ दश्य | २.
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