हिंदी शब्द सागर | Hindi Shabd Sagar

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Hindi Shabd Sagar by बाबू रामचंद्र वर्मा - Babu Ramchandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंतमेगा प्राण । जीव । ऋंतसंभा-वि० * [ सं० अन्तः+मन ] अनमना । उदास । झंतर्मझा--संशा पु० [स०] मन का कुर या बुसई । अंतमूंख--जि० [ स» ) जिसका मुंह मीतर की ओर शे | भीतर मुँदबाला | जितका छिंद्र मीतर की भर हो । जैसे, खतमुंख फोड़ा | क्ि० वि० भीतर की ओर प्रवृत | जो आहर से हृ:कर भीतर ही छोन हो । अंतर्याप्नी--वि० [ सं० अन्तर्याभिन्‌ ] १ भीतर जानेबछ | जिसकी गति मन के भीतर तक हो | २ अतःकरण में स्थिर होकर प्ररणा करनेषाल, । चिन्त पर दबाव या अधिकार रखनेवःन्म । ३ भीतर की बात जाननेवाला | मन की बात का पता रखनेवाल। । सज्ञा पु ई.वर । परमात्मा । परमश्वर । अंतर्राष्ट्रीय “विश [ म~ श्रतगू+ राष्ट्रीय ] सप्तार के सत्र या अनेक राष््रा से सबब েননাঙ্গা | জান্বযাগ্া | अंतर्लेध -सशा पु० [स०] बह त्रिकश क्षेत्र जिसके भीतर लव गिरा हो | अंतर्तापिक[--सशा स्रो० [स०] बह पहेली जिसका उत्तर उस पहेलो के मक्षरो मं हः। সানি --वि० [स०] मग्न । भीतर । छित्र हुआ | डूबा हुआ বা । विर्क/न । अंतर्वती--वि० स््री० [स०] १ गर्भ- वती । गभिणों | ह्मिछा | २ লীনা | अदर की | भ्रत्बंणे- বা তুৎ [০] श्रतिम वर्ण का । चतुर्थ वणु का । दर । झंतर्व॑र्ती--वि० [ অন্বনাওিনু] भीतर रहनेवारछू | ३२. अन्तर्गत । अन्तर्भुक्त अंतर्वांशी--सशा पुं [ स] १ शल्ररे । २ पंडित । विद्धम्‌ । १९ अंतर्विकार--सशा पुं० [ स० ] शरीर का धर्म जेस, मू, प्यास, पीड़ा इत्याहि । अंतर्वेगी ज्यर---सज्ञा पु [स०] एक प्रकारका ज्वर जिसमें रोगी को पस्तीना नहीं गाता । अंतर्वेदु-पु० [स०] [वि० अन्तवेदी | १ देश जिसके अतर्गंत यशो की वेदियों हो । २ गगा और यमुना के बीच का देश । ब्रह्माबतं । ३. दौ नदियोके बच का देश । दामात्र। अंतर्वेदना--सशा खी° [ म ] श्रतः करण की वदना! भीतरी या सान- सिक्र कष्ट । खझंतर्वेंद्ी--वि०[ स० अतवंदीय ] अंतर्वेंद का निबासो | गगा-यमुना के दोआत में क्सनेवाल | अतर्वेशिकृू-सशा पु० [ स> ] अत:- पुररक्षक । ख्वाजा भरा। अंतर्तित--वि० [स०] १. तिराध्टित । द्रतद्धान । गुप्त | হাসল | २ छिया हुआ । अदृश्य । अंतशब्या--पक्ञा खा०[स०]१ मृत्यु- शब्पा । मरनसाद । भूमिशय्या) २ इमरान | ससान। मरघटठ । ३ मरण । मृत्यु) अंतश्छुदइ--तशा पु० दे० “अतरूठदः” | अंतस्‌-सतञ्ा पु० [ स० ] अतःरण | द्वदय । अंतसद--सशा पु० [ स० ] शिष्य | त | श्र॑तखमय--पा पु° [ म० ] मत्यु- काल | अंतस्तख्--सशा पु० [ स° ] शरीर का मीत्तरौ या मध्यवती स्वमन | मन | अंतस्त(प्‌-सज्ञा पुं० [ स० ] লান- सिकर कद | अंतस्थ--व्रि० [ स० ] १, भीतर का। मीवरी । २, बीच में स्थित । मध्य का। मध्यर्ती । बीचवाछ। । ३ य, र, क, ऋत:पटी व, ये चारो वर्ण । अंतस्थित--वि० दे० “मतस्थ” | अंतस्नान--संज्ञा पुं> [ स० ] अब- भथ स्नान । वह स्नान जो यज्ञ समाम हाने पर हो । अंतस्ललिल--वि० [ स> ] [ स्री० अतस्तछिला ] ( नदी ) जिसके जल का प्राह बाहर न देव पडे, भीत्तर हा { ञमे अतस्तलिला सरसती । अतस्सलिला-खंश, खी° [ स | १ सरस्वती नदी । २. फगू नदी । अंताराष्ट्रिय -बि०दे ० “अतरांद्रीय”'। अंतावशी--सत्ा सत्री [स० अति] अँगड़ी । आँतो का समूह । अंगवसायी--संशा पु०[स०] अस्थस्य २ ग्राम की सीमा के बाहर“रहनेवाले । अंतावलायी--उंशा पु० [ स० 1१. नाई । हज्जाम | २ हिंसक। चांड/छ। अंतिम--ब्रि० [ स० ] १, नो अत में हो । अत का आखिरी । सबके पी छेका २ चरम । सबसे बरढकर | हृददरजे का । अंतिमेत्थम्‌ -सश्ा पु० [सं० भि० अ० अल्टिम -म ] विवादास्पद विषय के निपमरे के लिए रक्खी हुं मतिम मोग या दात। अंतेडर, ऊतेदर%--सशा पु० [ सं* सतःपुर ] मं पुर । जनानखाना। अंतेवासी --सज्ञा पुं० [स० ] १ गुरुके स रहनेवाछा। शिष्य | चेल, | २ ग्रमम के बाहर रहनेवाला। चाडाल । मप्यज। अतःकरथ- सज्ञा पु [स०] १. वह मातरी इद्रे जो सकर, विकय, निश्वय, स्परण तथा दुश्खादि का अनुभव करती है । मन । २. विवे$ । नैतिक बुद्धि । अंतःफ्टी--सरा ज्री० [स० ] १. कक्षी चित्रपट मे नदी, पंत, मगर आदि का दिखलछाया हुआ दश्य | २.




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