रावबहादुर | Raavbahadur

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Raavbahadur  by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोजियर का पारिचय- १४. रह'गए | सर्वत्त उसकी प्रशंसा होने लगी। यहाँ तक किः उसकी नाव्य-कला-निपुणता की बात राज-घराने तक पहुँची । उसे बादशाह लुदें को अपनी कलाएनिपुण॒ता दिखलाने का अवसर प्राप्त हुआ । मोलियर की नाव्यः कला-चातुरी देखकर लु प्रसन्न हो गया, और प्रसाद- स्वरूप मोलियर को अपना जीवन अत समय तक खझुख- पूवैक बिताने के.लिये राजाभश्रय मिल गया । राजा की कृपा हुई, तो प्रजा में सम्मान होना दी चादिए | मंडली चहुत बड़ी हो गई, और उसका नाभ भी चद्ल दिया गया । इस प्रकार मोलियर का खितार चमक उठा । मोलियर को सफलता ते हुई, पर सफलता के साथ-साथ उसका कार्ये-भार बहुत. बढ़ गया | अपनी नाटक-मंडली का प्रमुख वद्दी था | इसके अतिरिक्त मंडली का प्रधान्न पात्र भी था|. इन ज़िस्मेदारियों को निवाहते हुए भी उसको नाटक लिखने का -समय मिल जाता था। उसकी शक्ति ओर कार्य-कुशलता ने यह सब भार उठा लिया । अगले दस. वर्षो में उसने २८ नाटक लिखे ।ये नाटक एक-खे-एक बढ़- चढ़कर हैं, और इन्हीं के कारण आज वह संसार के লীন नाख्यकारों में गिना जाता है। मोलियर के अत्यधिक परिश्रम. का फल यद्द छुआ कि बुद्धि और शरीर दोनों ही, कार्ये- भार से दवकर, धीरे-धीरे जवाब देंने लगे । शरीर में रोग ने घर कर-लिया । एक दिन, फ़रवरी, सन्‌ १६७४३ ई० को,




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