जैन साहित्य और इतिहास | Jain Sahitya Aur Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय ' ओऔी नाथूरामजी प्रेमी जहाँ व्यक्ति है, वहीं संस्था भी है। उनके चतुर्दिक्‌ कार्योके अनेक सूत्र फैले रहते हैं| सामाजिक सुधार एवं साहित्यिक रचना इन दोनोमे उनकी समान प्रश्वत्ति रही है | वेआज छगमग चालीस वर्षोंसे जैनसाहित्य ओर इतिहासके क्षेत्रमँ मौलिक शोधका कार्य करते रहे हैं। किसी समय वे जैनहितेषी पत्रके यशस्वी सम्पादक थे | उनके अधिकाश ऐतिहासिक लेख उसी पत्रमे प्रकाशित हुए थे । “जैनहितेषी ! १९२१ में बन्द हो गया। तेव सन्‌ १९४२ मे उन महत्वपूर्णं ठेखोका एक विशिष्ट सग्रह “ जैन साहित्य ओर इतिहास › नामसे प्रकाशित हुआ | विद्वत्समाजमे उसका भारी स्वागत हुआ উন আহি ओर इतिहासते सम्बन्धित कोई बौद्धिक मयत ऐसा न होगा जिसपर ओमीजीके मौलिक अनुसधानका प्रभाव न पडा हो । बस्ठ॒तः अमीचीने यापनीय संघ और उसका साहित्य, देवनन्दि और उनका जैनेन्द्र व्याकरण, शाकययन ओर उनका शब्दानुशासन, पउमचरिय, महाकवि पष्पदन्त आदि महत्त्वपूर्ण विषयोपर पहली ही बार विद्वानोका ध्यान आकर्षित किया था | आज तक उन लेखोंका महत्त्व उसी प्रकार बना है। जैनेद्र व्याकरणके कर्ता आचार्य देवनन्दिके विषयमें जो सामग्री १९२१ मे उन्होंने एकत्र की थी কলা तक“उससे अधिक हम कुछ नहीं जान पाए हैं। अतएव अभी भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित जैनेन्द्र व्याकरणके प्रामाणिक संस्करणमे उनका वह लेख भूमिका रूपम हमने उद्धूत कराया है । यापनीय संघ दिगम्बर ओर ताम्बर सम्प्रदायोके बीचकी विकास दखल थः । इस समय उसका नाम तक विस्मृत हो गया दै, पर विक्रमकी प्रथम सहलान्दीमे यापनीय आचायोनि अपने समन्वयात्मके दृष्टिकोगसे विस्तृत सादित्यकी सृष्टि की थी। शाकठायन व्याकरणके स्वयिता वैयाकरण शाक्ययन इसी सम्प्रदायके थे । परेमीजीने यापनीयोके समनन्धमे जो खोज की धी उसकी 'मौल्किताका अमी तक पूरा अनुभव नहीं




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