स्मृति सत्ता भविष्यत् तथा अन्य श्रेष्ठ कविताएँ | Smriti satta Bhavishyat Tatha Anya Shreshth Kavitayein

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Smriti satta Bhavishyat Tatha Anya Shreshth Kavitayein by ब्रह्मचारी विष्णु - brahmchari vishnu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ण अधिकार होना तो अपरिहार्य है ही ! 'स्मृति सत्ता मविष्यत” को कविताओं के अनुवाद के समर्थ अधिकारी हॉ. भारतभूषण अग्रवाल इस वृष्ठि से हैं कि बाइछा भाषा और साहित्य से उत का परिचय पुराना है और घनिष्ठ है। बाङ्ला हृतियों के उन के द्वारा प्रस्तुत सुन्दर अनुवाद प्रकाशित हो भुके हैं । और वह स्वयं कवि हैं ।-डॉ. लोकनाथ भट्टाचायं का साहघर्य साहित्य अकादमी में उन को निरन्तर उपलब्ध हैँ। दोनों भित्रों ने दुस्ह कविताओं के अर्य को संगति वैठनेमे (भौर इस प्रक्रिया में कविता के आनन्दलोक के सहयात्रो होने का रोमांच अनुभव करने में ) अनेक बैठकों का सुस प्राप्त क्षिया है । “अन्य श्रेष्ठ कविताएँ” खण्ड फी बहुत सी कविताओं का अनुवाद डॉ. इन्द्रनाप चौधरी ने किया है जो बाड्ला, हिन्दो मौर ओंगरेढो साहित्य के अपीतो विद्वान हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक ह, बाडूला उन को मातृभाषा है, आकाशवाणी से हिन्दी के माध्यम से बाइला भाषा की शिक्षा के छीकप्रिय वारत्तांकार हैं। डॉ. चोधरी ने बहुत आड़े समय में अनुवाद का दायित्व स्वीकार फिया ओर शक्ति मर उसे समय पर पूरा करने का प्रयत्न किया। स्वरा की इस स्थिति में उन की अनुवाद-प्रक्रिया यह रही कि पहले मूल कबिता के भाव और ध्वनि को बाइलछा और हिन्दी में समान रूप से प्रयुक्त होने वाले संस्कृतनिष्ठ शब्दों की तद्रूप अम्विति द्वारा सम-्तोल पंक्तियों मैं उतार, फिर हिन्व की प्रकृति के अनुरूप उसे ढालें। इस दूसरे चरण में--अभिप्राय की अवधारणा, हिन्दी में शब्द-अन्विति, एवं सम्प्रषणीयता को स्थिति को साधने के प्रगल में मुझे डॉ. चोघरी का सहयोगी होने का अवध्तर प्राप्त हुआ है। अनुवाद के दायित्व की कठिनाई का मैंने प्रत्ति वर्ष सामना किया है, अतः मैं जानता है कि जो सघ गया जोर सार्थक हो गया, वह तो पाठक की दृष्टि को सरल लगेगा ( अच्छे अनुवाद का गुण हो यह हैं कि पाठक पढ़ते हुएं समझे कि अनुवादक को आयास ही नहीं करना पड़ा, जब कि अनुवादक जानता हूँ कि इस के लिए उसे कितना धरम करना पढ़ता है, कितना समय देना होता है ) छेकिन जहाँ कहीं भी अस्पष्टता रह गयी या भाव-बोध में पाठक को उसकी अपनी धारणा के अनुसार विपरयंय छगा, या छय की पझाँको तक नहीं दी जा सकी, वहाँ हो अनुवादक दोष-भागी माना जायेगा । जब ऐसी स्थिति आये तो हमारा अनुरोध ह कि पाठक मूल को हौ सामने रखे मौर उसे प्रमाण माने । धर विष्णु देको कविताओं के जो अंगरेडी-अनुवाद प्रकाशित हृए है और उन में बहुत सो कविताओं का अनुवाद स्वयं “विष्णु दे में किया है, उन का अध्ययन अनुवाद की समस्याओं और कठिनाइयों को प्रत्यक्ष प्रस्तुत करता है ।




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