फूलोंका गुच्छा द्वितीय भाग | Foolon Ka Gucchaa Dwitiya Bhaag

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Foolon Ka Gucchaa Dwitiya Bhaag  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

Add Infomation AboutNathuram Premi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कनक-रेखा । সপপপ্প্প্প্প্প্া্পিাগা রা... चार्ली बाबा । ৬১৯৩৩ ख जायका पाकर हेर ह उन्मत्त हो जाता है, यह बात -खूनके लिए मनुष्यकी सोई हुई पाशविक वात्ति भी जग उठती है । शिवरात्रिके दिन शिवजीके मन्दिरमें जितनी भीड होती है उससे बहुत ज्यादा कालीके मन्दिर भेंसेके बलिदानके दिन होती है । उस समय यदि रक्तपात हो जाय तो कौन रोक सकता है £ हमारे अनेक मित्र उस दृश्यको देख आये हैं, पर हम उसको देखना नहीं चाहते | यदि हमारी भी सोई हुईं शादूलबृत्ति जग उठी तो फिर हम उसको रोक न सकेंगे । बलिदान देखनेके हम जितने इच्छुक रहते हैं आरतीके उतने नहीं । आज कानपुरके जजकी अदाठ्तमें जो इतनी भीड़ है उसका भी एक ऐसा ही कारण है । मरे साहबके खानसामा माताबदलने मेरे साहबका खून किया है--इस अपराधमें सेशन जज फोरेस्ट साहबके इजलासमें उसका विचार हो रहा है। ऐसे भारी अपराधमें फॉसी द्वेनिकी पूरी संभावना है । फोरेस्ट साहब बड़े कड़े हाकिम हैं, यह बात सारा शहर जानता है। एक मरे साहबका खून हुआ और अब माताबदलके रक्तपातकी सम्भावना है-क्या ऐसे “तमाशे” को देखनेका चाव कोई रेक सकता है ?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now