फूलोंका गुच्छा द्वितीय भाग | Foolon Ka Gucchaa Dwitiya Bhaag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कनक-रेखा ।
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चार्ली बाबा ।
৬১৯৩৩
ख जायका पाकर हेर ह उन्मत्त हो जाता है, यह बात
-खूनके लिए मनुष्यकी सोई हुई पाशविक वात्ति भी जग
उठती है । शिवरात्रिके दिन शिवजीके मन्दिरमें जितनी भीड होती है
उससे बहुत ज्यादा कालीके मन्दिर भेंसेके बलिदानके दिन होती
है । उस समय यदि रक्तपात हो जाय तो कौन रोक सकता है £
हमारे अनेक मित्र उस दृश्यको देख आये हैं, पर हम उसको
देखना नहीं चाहते | यदि हमारी भी सोई हुईं शादूलबृत्ति जग
उठी तो फिर हम उसको रोक न सकेंगे । बलिदान देखनेके हम
जितने इच्छुक रहते हैं आरतीके उतने नहीं ।
आज कानपुरके जजकी अदाठ्तमें जो इतनी भीड़ है उसका भी
एक ऐसा ही कारण है । मरे साहबके खानसामा माताबदलने मेरे
साहबका खून किया है--इस अपराधमें सेशन जज फोरेस्ट साहबके
इजलासमें उसका विचार हो रहा है। ऐसे भारी अपराधमें फॉसी
द्वेनिकी पूरी संभावना है । फोरेस्ट साहब बड़े कड़े हाकिम हैं, यह
बात सारा शहर जानता है। एक मरे साहबका खून हुआ और
अब माताबदलके रक्तपातकी सम्भावना है-क्या ऐसे “तमाशे” को
देखनेका चाव कोई रेक सकता है ?
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