कसाय पाहुडं भाग ४ | Kasaya Pahudam-4

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Kasaya Pahudam-4 by पं. फूलचन्द्र शास्त्री - Pt. Phoolchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८) बालोका नप्रन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है, क्योंकि सम्यक्त्वको प्रास होनेवालोका और सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वम जानेवाले नीवोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौत्रीस दिन-रात है, इसलिए, यह उत्कृष्ट अन्तर उक्त कालप्रमाण कहा है | तीन सज्यलन और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिवालोका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधवक् एक वर्ष हे. क्योकि ईन प्रकृतियोके उठयसे इतने कालः अन्तरसे क्नपक्भ्रेणिपर्‌ आरोहण करना सम्भव दे | लोभसन्च्नकी जघन्य 1स्यतिवालोका जप्रन्थ अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह मद्दीना है, क्याकि ्षयकश्रेणिका जघन्य अन्तर एक ममय ओर उक्कृष्ट अन्तर छह महीना है । स्नीवेद ओर नपु सकवटकी जघन्य म्थितिवाहोका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष् अन्तर मंख्यात वपर है, क्योकि टन वदवानेका इतने कारक अन्तर्मे क्नपकश्रेणि पर आरोदण करना सम्भव ই | হুল লব प्रकतियोकी अनवन्य स्थितिवालोका अन्तर काल नहीं है यह स्पष्ट दी है । गति आदि मार्गणाओ में अपनी अपनी विशेषता जानकर यह अन्तरकाल ऋे आना चाहिए ) सन्निकर्ष--मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता होती भी हैं और नहीं भी होती । य्रद्‌ अनादि मिथ्यादृष्टि जीव हैं या जिन्होंने इन दोनोकी उद्धलना कर दो है उनके सता नहीं होती, शेष जीवोके होती हे । जिनके सत्ता होती है उनकी इनकी स्थिति नियमसे अनुल्कृष्ट होती है, क्योकि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति मिथ्याल गुणस्थानमें हाती है और इनकी उत्कृष्ट मिथिति बदकमम्यक्चकी प्रामिके प्रथम समयमें होती है, इसलिए मिध्यात्वकी उत्कृष्ट म्थितिवाले जीवके इन दोनोकी उत्त्कृष् स्थितिका निप्रण किया है। इनकी अनुत्कृष्ट स्थिति भी अन्तमुहूतं कम अपनी उत्तर स्थितिसे लक एक्‌ स्थितिषयन्त होती ई । कारण स्पष्ट है । इतनी विशेषता दै कि अन्तिम जघन्य उदेलनाकाण्टफकी अतम फालिमें जितने निषेक होते है उतने भिथ्यात्वकोी उत्कृष्ट स्थितिके साथ इन दोनों प्रकृतियोकी अनुत्कृष्ट स्थिति के सन्निकर्ष विकल्व नहीं होते । मिध्यालकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके सोलह कपायोंकी उत्कृष्ट स्थिति শী হা্থা हे ओर अनुकृष्ट स्थिति मी होती है । यदि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट म्थितिक्ा बन्ध करते समय सोलह कषायोंकी उन्कर2 स्थितिका -न् करता है तो उत्कृष्ट स्थिति इंती है, अन्यथा अनुल्कृष्ट स्थिति होती है जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा कमसे कम एक समय और अधिकसे अधिक पल्यके असंख्यातव मागप्रमाण कम होती है। ख्रंविद, पुरुषवेट, हास्य और रतिकी नियमसे अनुत्कृष्ट स्थति होती है, क्योंकि उस समग्र इनका अन्‍्व नहीं होता जे अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा कमसे कम अन्तर्मृहृत कमर होती है. और इस प्रकार उत्तरोत्तर कम होती हुई इनकी अनुत्कृष्ट स्थित अन्तःकोढ़ाकोडी प्रमाण तक ग्राम हो सकती है। मिथ्यात्यकी उत्कृष्ट स्थितिके समय शेष पाँच नोकपायाकी स्मिति उत्कृष्ट भी द्वोती है और अनुत्कृष्ट भी होती है । यदि उस समय सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिका अन्‍्ब होकर एक आबलि कम उसका पाँच नोकपायोंर्म सक्रमण हो रहा है ते उत्कृष्ट स्थिति होती है, अन्यथा अनुक्कृष्ट म्थिति होती है जो अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यका असख्यातवा भाग कम बीस कोडाको्डी सागर तक सम्मव है | इस प्रकार मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिकों प्रधान करके सम्निकर्पका विचार किपा | सम्यक्त्बकी उत्कृष्ट स्थितिवाले के मिध्यात्वकी स्थिति नियमसे अनुल्कृष्ठ होती ই जो भरना उत्कूर स्थितिकी अपेक्षा अन्तमुंहू तं कम होती है । उस समय सम्यग्मिध्यात्वकी स्थिति नियमसे उक्र दर्त्‌ ई । कारण स्पष्ट है। सोलह कषाय और नो नाकषायोंकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ठ होती है जी अपनी उन्कृष्ट स्थितिकी अपा अन्तमुहृत्त कमसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कम तक होती है | सम्यग्मिश्पात्वका उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य करके इसी प्रकार सन्निकर्ष विकल्प जानना चाहिए । भिध्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिको भुख्य करके पहले सन्निकर्ष कह आये हैं. उसी प्रकार सोलह वषायोंकी उत्कृष्ट स्थितकी अपेक्षा सन्निकर्ष জানলা चाहिए | ज्ोवदको उत्कृष्ट स्थितिवालेके मिथ्यात्वकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है जा अपनी उत्कृष्ट की अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्यके असख्यातवे भागग्रमाण कम तक होती है | सम्पक्त्त और सम्यग्मि-




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