साम्यवाद | Samyavad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
518
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बहुत जोर देते हैं कि जमीन और पूँजी पर से व्यक्तिगत अधिकार उठा कर उन्हें
समाजके अधिकारमें कर दिया जाय जिसमें खुख और सम्पत्ति भादिका सारे
समाजमें समान रूपसे बटेँवारा हो जाय । यह मुख्य उद्देश्य है जिसके सम्ब-
न्धमें समस्त साम्यवादी सहमत हैं । हाँ, इस उद्देश्यकी सिद्धिके उ-
पायेके सम्बन्धमें उनमें अवश्य मतमेद दै । परन्तु फिर मी आशा होनी है
कि कुछ समयमे उदेक्ष्यसिद्धिका कोई ऐसा उपाय भी निकल आवेगा जिस
पर सब साम्यवादी सहमत दोगि । य्दा इस बातका भी ध्यान रखना चाहिए
कि प्रस्येक देश ओर सम।जकी परिस्थितिके भेदसे उनमें साम्यवादके उद्देशों-
की सिद्धिके उपाय भी एक दूसरेसे कुछ भिन्न होंगे।
यद्यपि साम्यवादका मुख्य आधार केवल आर्थिक है परन्तु समाजके राज-
नीतिक, औद्योगिक, सामाजिक तथा नेतिक आधारोंका भी उसके साथ ओत-प्रोत
सम्बन्ध है । बिना राजनीतिक अधिकारोंके इतने आधारोंमें कोई भारी परिवर्तन
करना असम्भवं है, श्सील्यि साम्यवादी लोग ॒शचासनसंस्थाओंको भी रोक-
मतवादके आधार पर संगठित करके समाजक्रे अधिकारमें कर देना चाहते
हे । अथवा यों कहा जा सकता है कि लोकमतानुसारी अथवा प्रजाल॑त्रशासन-
में सामाजिक विषमताके कारण जिस मुख्य सुव्यवस्थित आर्थिक अंगक़ा अभाव
है, उसीकी पूर्ति साम्यवादका मुख्य उद्देय है । जो धनवान् और सबल अब
तक केवल निधनों और दुबंलोंको दबाने और उनके घनका अपहरण करनेमें ही
अपनी सारी लियाकत खर्च किया करते थे वे ही धनवान् ओर सबल प्रजातंन्न-
शासनके इस अंगकी पूर्ति हो जाने पर उन निधनों तथा दुर्बलोंकों सब प्रकारसे
सुखी ओर उन्नत करनेके अयत्नमें लग जायेंगे । साम्यवादियोंक्रो यह भी आशा
है कि साम्यवादी राज्यमें आर्थिक प्रतियोगिताके भावके समूल नष्ट हो जाने पर
शिल्प और कछा आदिकी यथेष्ट उन्नति होगी; क्योकि उस समय किसीको केवल
सस्ती चीजें ही तैयार करनेकी चिन्ता न रह जायगी । ओर सबसे बढ़कर बात
यह होगी कि समाजका प्रत्येक व्यक्ति सब प्रकारसे स्वतंत्र सुखो और सम्पन्न
हो जायमा । साम्यवादकी अनेक बातें इतनी युक्तियुक्त और सामाजिक विकास-
के नियमोके भनुकू हैं कि बहुतसे अंशोमें यही कहना पड़ता हे कि साम्य-
वाद् समाजके भावी स्वरूपके सम्बन्धर्मे केवर भविष्यद्राणी कर रहा हे ।
अन्तमें में उन प्रन्थोंके छेखकोंके प्रति कृतज्ञता भ्रकट कर देना अपना
कर्तव्य समझता हूँ जिनकी सहायतासे में यह पुस्तक लिखनेमें समर्थ हुआ हूँ.
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