संस्कृतप्रबोध | Sanskrit Prabodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
309
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सरिकांकरण 1 ४
भागम জীন प्रकार के हेते है रिष्, किव् भीर भिद् । टकार
जिज्ञका इत् गया दे ই रिव् , जैसे छर्, धुट् शत्यावि | কষা
जिनका शत् भया हा, बे कित्. जैसे वुक् , षुक् इत्यादि । मकार
जिनका इत् गया हा, वे मित्, जैसे युम्, सुम् इत्यावि ।
হিল आगम जिसका कहा ज्ञाय, उसकी आदि में, कित् अन्त
मँ भीर मित् भन्त्य अच से परे द्वोता है ।
खम्धि तोन भकार की है १-जच् सन्धि २--दल् सन्धि
३ ~ विश्ग सन्धि ।
अवो के साथ ध् का जा सयोग हाता है उसे अच् सन्धि
कहते है ।
अच या हल के साथ जा हलों का संयेग द्वाता है उसे हल
सन्धि कहते है ।
अच् संयुक्त हां के साथ जे विग का सयोग होता है
उसे विसगं सग्धि कहते है ।
अचसन्धि ।
भच् सन्धि सात प्रकार की देवो है। १, यश्} २, भयादि
चतुष्टय । है, गुण । ४, षि 1 ५, सवरंदीषं } ६, पररूप | ७,
पूचूप ।
१ यख्
इख षा दीर्घ ६, उ, ऋ, से परे कोई भिन्न अच रहे ते इ, उ,
ऋ, के। क्रम से, य, थ, र, आदेश दो जाते दें और इसी के यरश्
सन्धि कहते हैं ।
मोखे के खक्त से इसका উহ ছিজ্র ইলা ।
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