मेरी विकास कथा अर्थात दिव्य दर्शन | Meri Vikas Katha Arthat Divya Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनी तरिकास कथा { १३
उनके दुःख में दुःखी होने में जो आनन्द दै-उसकौ चराचधै कोन
कर सकता है ! तुम्हारी ये चडी बड़ी आंखे, जो आंसुओं का कटोस
মাতুল झोती हैं, इन पर सारा सौन्दर्य न््यौछाबर किया जा सकता इ ।
तुम्हारी आंखों की एक एक बूंद में सब रसें। का सार भरा हुआ है |
इसीलिये ते कब्रियों न करुणश्स को प्रधानरस कह्ढ। दे । सभी सम्य
ददयों में तुम्झस ही के राज्य है दया |
जी हां, पर आपके हृदय में तो नहीं है |
सच कडा तुमने, मेरे द्वदय में तुम्हारा राज्य तो नहीं ६, पर
में तुम्हारा जितना खयाड रखता हूं-उतता किसी «सर का नहीं
रखता ।
इसीडिये मेरे कपड़ों प्र जब चाहे तब कैंचो चलाया करते हैं !
अधूरी बात न बोले दया, में कैंची भी चलता हूं ओर
सुई भी । फाइता भी हूं और जोड़ता भी हूं। आडिर में तुम्हारा
जी हूं-ठीक पोशाक बनाने के लिये यह सब करना द्वी पडता दे ।
3टे पिता की बातें से सभी हँसने छगे । में भी दँसा, पर
इस हँसी के आनन्द से अधिक आनन्द मुझे यह देखकर हुआ कि
दया का छोटे पिता से कैसा मीठा सम्बन्ध द्वे । शल्कि मैंने तो यदी
नुभव किया के ये चारों देव-देवियां जब तक छोटे पिता के
अकुश में हें तभी तक ठीक हैं |
8
में यह सब सोच द्वी रद्या था के छोट पिता ने मेरी तरफ
देखकर कद्दा-क्यों रे | क्या सोचता है £ इनमें से त किसे पसन्द
करता हे !
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