प्राचीन पंडित और कवि | Pracheen Pandit Aur Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1372.75 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भवभूति श्र
कई व हुए, हमारे मित्र पंडित माघदराद, वेंकटेश लेले
को; बंबई में, एक प्राचीन दस्त-लिखित मालतीमाघव की
पुस्तक मिलनी । उसमें “भटकुमारिजशिप्य मट्टमवभूति ”
लिखा है । “गोड़वघ” को भ्रूमिका में भी लिखा है कि इं दौर
में मालतीमाघव की एक पुस्तक मिली है, जिसमें “इति--
कुमारिल-शिष्यकृते” लिखा है । कुमारिल भट्ट सप्तम
शताब्दी के अंत में हुए हैं । श्रतएव भवभूति का श्ष्टम
शताब्दी के झादि में होना सब प्रकार सुसंगत है ।
शंकर दिग्विजय में लिखा है कि दिद्धशालभंजिका श्र
बालरामायण श्रादि के कर्ता राजशेखर के यहाँ शंकराचार्य
गए थे: श्रौर उनके बताए नाटक श्वाचार्य ने देखे थे । इससे
राजशेस्तर शर शंकर को समकालीनता प्रकट होती है |
राजशेखर पने बालरामायण में लिखते हैं--
बभूव चरमीकभुदः कदिः पुरा
ततः भ्रपेदे भुवि भव मेदुताम्
स्थितः पुनयों भवभूतिरेखया
सख॒चर्तते सम्प्रति राजशेखरः
अथोंत्, पददले वार्मोकि कवि हुए। फिर भत हरि ने जन्म
लिया; तदनंतर जो भवभ्रूति-नाम से प्रसिद्ध था, वदद अब
राजशेख्वर के रूप में घर्तमान है । शंकराचार्य श्ष्टम शताब्दी
के अंत में हुए हैं । झतपव राजशेख्वर का झस्तित्व भी उसी
समय सिद्ध है । जब यदद सिद्ध दे तब ऊपर दिए गए श्लोक
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