प्राचीन पंडित और कवि | Pracheen Pandit Aur Kavi

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Pracheen Pandit Aur Kavi by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भवभूति श्र कई व हुए, हमारे मित्र पंडित माघदराद, वेंकटेश लेले को; बंबई में, एक प्राचीन दस्त-लिखित मालतीमाघव की पुस्तक मिलनी । उसमें “भटकुमारिजशिप्य मट्टमवभूति ” लिखा है । “गोड़वघ” को भ्रूमिका में भी लिखा है कि इं दौर में मालतीमाघव की एक पुस्तक मिली है, जिसमें “इति-- कुमारिल-शिष्यकृते” लिखा है । कुमारिल भट्ट सप्तम शताब्दी के अंत में हुए हैं । श्रतएव भवभूति का श्ष्टम शताब्दी के झादि में होना सब प्रकार सुसंगत है । शंकर दिग्विजय में लिखा है कि दिद्धशालभंजिका श्र बालरामायण श्रादि के कर्ता राजशेखर के यहाँ शंकराचार्य गए थे: श्रौर उनके बताए नाटक श्वाचार्य ने देखे थे । इससे राजशेस्तर शर शंकर को समकालीनता प्रकट होती है | राजशेखर पने बालरामायण में लिखते हैं-- बभूव चरमीकभुदः कदिः पुरा ततः भ्रपेदे भुवि भव मेदुताम्‌ स्थितः पुनयों भवभूतिरेखया सख॒चर्तते सम्प्रति राजशेखरः अथोंत्‌, पददले वार्मोकि कवि हुए। फिर भत हरि ने जन्म लिया; तदनंतर जो भवभ्रूति-नाम से प्रसिद्ध था, वदद अब राजशेख्वर के रूप में घर्तमान है । शंकराचार्य श्ष्टम शताब्दी के अंत में हुए हैं । झतपव राजशेख्वर का झस्तित्व भी उसी समय सिद्ध है । जब यदद सिद्ध दे तब ऊपर दिए गए श्लोक




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