इक्कीस बांग्ला कहानिया | Ikkiis Baanglaa Kahaaniyaa

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Ikkiis Baanglaa Kahaaniyaa by देवलीना - Devleena

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अरुण कुमार मुखोपाध्याय - Arun Kumar Mukhopadhyay

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देवलीना - Devleena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाखिरो बात 3 कचहरी में जोर-दोर से तयांरियां होने लगीं । किसानों का दल इस सब से चौंक उठा । दोनों के बीच इस लड़ाई में सांड के पर के नीचे जंगली घास की तरह उनका हाल था । वे चंचल हो उठे । बूढ़ा लाल मोहन पांडे भरतपुर के किसानों का पंडा था । छोटे-छोटे कतरे हुए बाल । दांत सभी भड़ गये थे । आहिस्ते-आहिस्ते बात करता था । मीठा-मधघुर मुस्कराता था । चिन्ता में पड़ कर बूढ़ा अपने सर पर हाथ फेरता रहा । भरतपुर लाट के लोगों ने भुंड में आकर बूढ़े को घेर लिया । बड़े सम्मान से बूढ़े ने हाथ जोड़े । बिना दांत की हंसी हंसकर जिस तरह मां की गोद में बच्चा हंसता है वसी हंसी हंस कर बोला आइए पंच । सब बठ गये । फिर बोले एक बात है मालिक ? बस उसी एक बात में उनका कहना खत्म हो गया । हजूर भी सब समभक गये । बूढ़ा सुख में भी हंसता दुख में भी हंसता चिंता में भी हंसता । बूढ़ा सोचते हुए मुस्कराने लगा | गोरपुर के किसी ने कहा साहू लोग हमारी जमीन की मिल्कीौयत नहीं मान रहे हैं। फिर हम अपनी सुविधा क्यों छोड़ेंगे ? साहू जमींदार है सांई भी जमींदार हैं--अगर साई जमीन पर हमारी मिल्कियत मान लें तो हम उनकी तरफ गवाही क्यों न दें हुजूर ? बूढ़े ने सर हिलाकर कहा नहीं पाप होगा । किसी ने कहा तो फिर आओ हम लोग भी मिल-जलकर फौजदारी ठोंक देते हैं । बूढ़े ने सर हिलाया-- ऊ-जहुं। क्यों डर लग रहा है क्या ? एक छोकरा तुनक कर बोल उठा । बूढ़ा हूंसा । उस हंसी के आगे छोकरा दब-सा गया । बूढ़ा हंसकर बोला -- डर को कोई बात नहीं है रे । इससे पाप चढ़ेगा । तो ? तो फिर क्या करने के लिए कहते हो ? किसमें पाप नहीं होता यही बताओ ? हुं । थोड़ा रुको भाई । मन से पुछ । मन भगवान से पुछेगा तब न ? रतन लाल बोला जो कुछ भी हो भटपट तय कर लो मालिक । जो तुम कहोगे मैं वही करूंगा । बूढ़ा हंसा । रतन पर बड़ा भरोसा था बढ़े को । छोकरा बड़ा भला था और उतना ही हिम्मती । ढुक्‌ ठुकू करता बूढ़ा कचहरी में आ पहुंचा-- राम राम नाएब जी । चर




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