जैनपदसंग्रह प्रथम भाग | Jainpadsangrah Pratham Bhaag

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Jainpadsangrah Pratham Bhaag  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमभाग । ५ ७. जवते आनद-जननि दि परी माई । বলব संशय विमोह মেলা विलाई । जबतें० ॥ टेक ॥ में हूं चि- तचिह्न, भिन्न परतें, पर जड़स्वरूप, दोउनकी एकता सु, जानी दुखदाई। जबतें० ॥ १॥ रागादिक बंधहेत, অল লু विपति देत, संवर दित जान तासु, देत ज्ञानताई । जवते ° ॥ २ ॥ सवं खुखमय शिव है तसु, कारन विधिञ्चारन इमि, तन्त्वकी विचारम्‌ जिन, चानि खधि कराह । जवते ॥ २ ॥ विपयचाहज्वालतें, द- द्यो अनंतकारुते स.-धांवुस्यात्पदाकगाद,-तं प्रगति आह । जवते ॥ £ ॥ याविन जगजालमें न, शरन तीनकारमें सं,-मारु चित भजो सदीव, दौर यह सु- हाई । অন্ন ॥ ५ ॥ ८ भज ऋपिपंति ऋर्पेभेश ताहि नित, नमत अमर असुरा} मनमंथ-मथ दरसावन रिवपंथ, चरप-रथ-चक्र- धुरा ॥ भज० ॥ टेक ॥ जाप्रञु गमंखमासपुवे सुर, कृरी सुवण धरा ! जन्मत सुरगिर-धर सुरगमयुत, दैरि पय न्हवन करा ॥ भज ० ॥ १ ॥ नटत বন্দী নিভু 6 ~ + 0৮ १ चिजरा । > स्याद्रादरूपी अग्रृतमे अवगाहन करमेचे } > सुनिनाय 1 ४ অলক ईद आदिनाथ भगवान्‌ 1 ५ कामदेवके मथनेवाले | £ मोक्षपथ 1 ও इन्द्र | ८ अप्सरा । শি




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