अर्ध कथानक | Arth Kathanak

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Arth Kathanak by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ करके युग़में उनकी घुमकड़ी शुरू हुईं और उन्होंने मथुरा, कनौण, और डाहलकी यात्रा की तथा कुछ दिनोंतक डाहलके कर्ण, अगहिस्थाइ़के कर्णदेव त्रैेक्यमछ (१०६४-११२७) तथा कत्याणके विक्रमादित छठे (१०७६-११२७ ) के यहाँ रहे तथा सन्‌ १०८८ में विक्रमाकदेवचरितकी स्वना की । उनके ग्रंथका विषय तो इतिहास है पर रह रहकर हम विकी आत्मकथाकी, निषमे कोरी तीखी वतिं युनाना मी भा जाता है, शल्कं पते दै। मुउल्मानोके उत्तर भारतमें अधिकार पानेके बाद फारसीमें एक ऐसे साहित्यका सुबन हुआ बिसमें इतिहास और आत्मकथाका मेल है। ऐसे साहित्यकारोमें अमीर खुसरोका नाम अग्रणी है। खुतरो ( १२५५९-७२५ हि०) कवि, सिपाही, संगीतत और सूफी ये। उनका ग्रमाव काव्यक्षेत्रमे इतना कहा कि उनके पहलेके कवियोंके नामतक छोग भूल गए उन्होंने अपने जीःमें सात सुस्तानोंके राज्य देखे, उनमेंसे कश्योंके साथ वह छडाइयोंपर गए और पाच मुल्तानोंकी सेवामे ओहदेदार रहे। अपने जीवनमें उन्होंने अनेक उतार- शढ़ाव देखे, सुत्तानोंकी विछञसिता और रागरग देखा तथा तल्कालीन बररताओं- प्र ओषु बहाए। अपने दीवानोंके दीवाचोंमें खुतरोने खुलकर अपनी रामकहानी कही है और उनकी ऐतिहापिक मसनवियोमिं मी ओछों देखी अनेक घठ्नाओका जिक्र है| ऐज़ाज खुसरवीमे उनके দীক্ষা ঘর ই जिनसे मध्यकाढीन जीवनके अनेक छोटे छोटे अगोपर भी अच्छा प्रकाश पढ़ता है। यह सच है कि खुसरोने कोर अछगसे अपना आत्मचरित नहीं लिखा, पर दौवानोंके दीबाचों और ऐतिहासिक मसनवियोमि उसने अपनी रामकहानी इतनी छोड़ दी है कि उसके आधारपर ही मध्यकालके इस महान परषका पूरा आं देखा चित्र खडा हो जाता ই। मुखलमानं बादाम तो आसमदरित लिखनेकी परिपादी ही चल पढी थी और इसमें सदेह नहीं कि बाबर और जहाँगीरके आत्मचरितोंमे उस मनुष्यताका दर्शन और आसपासकी दुनियाका विवरण मिलता है निसका पता मध्यक्रालीन साहियमे कम ह दिखलाई पडता है। मध्य एरिवाने हम तैमूर, वात्र, हैदर भौर अबुल गाजीके भामचसित दिए ह । फारसके शाह तहमायका माम चरित हमे आकर्षित करता है, तथा मारतके गुल्बदन वेगम और जहँगीरके आत्मचरित प्रसिद्ध दै ।




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