श्री गुरु चरित भाग २ | Shri Guru Charit Part Ii
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
463
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दौलतसिंह लोढ़ा - Daulatsingh Lodha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५
कुछ चुनते हैं और तदलुसार वत्तेने का प्रयत्न था संकल्प करते हैं और वे तब आगे
बढ़कर संसार के सुपुत्रों में गिने जाते है। भगवान् ऋषभदेव ने कल्याणमय जीवन
व्यतीत कर जैन-यर्म और जैन समाज को अमर गौरव दिया, जिसको कोई अग्नि
भस्म नहीं कर सकती, कोई ताप पिघला नहीं सकता, कोई वायु उड़ा कर नहीं ले जा
सकतीं, कोई आकाश उसको आत्मसात् नहीं कर सकता। इतना ही नहीं उनके
मांगे का प्रचार समय-समय पर जन्म लेने वाले अन्य तेइंस वीथडुरो ने ससार के
कोने-कोने में किया और भव्य प्राशियो को सत्पथ दिखा कर अजर-अमर शान्ति के
दशन कराये और आप मोक्ष धाम पधारे। इस मांगे में अनेक चल कर सिद्ध
हो गये, अनेक आचायेपद से और उपाध्यायपद से विभूषित हुये और असंख्य
साधु एवं भुनि जेसे आदशे पदों के धारक बने । घन्य है भगवान् ऋषभदेव को जो
आप तरे और आज तक भव्य प्राणियो को বার आ रहें हैं । तभी तो ऐसे महा-
पुरुषों को जगन्नाथ, जगदुगुरु, जगरक्षक, जगसाथेबाहक, जगबधु, जगचिंतामणि,
आदिकर, आदिनाथ, तीथकर, अवतार, सिद्ध, स्वयंसिद्ध, पुरुषोत्तम, अशरणशरण,
ज्ञानदाता, मागेदाता, अभयदाता भादि अतिशय सम्मानसूचक उपाधियों से
विभूषित कर के जगत् श्राज तक पूजता है। जिस कुल में, जिस पुर मे, जिस प्रान्त
में और जिस देश अथवा भूभाग में ऐसे महापुरुषों का जन्म हो जाता है, वह भी
इनकी अमरता के साथ अमर बन जाता है। आज हम देख रहे हैं कि उदयपुर का
राजवंश अपने पूवेजो की उज्ज्वल कीत्ति के कारण एक छोटा-सा राज्य होकर भी
संसार में सम्मान एवं गोरव की दृष्टियों से अद्वितीय ही नहीं प्रतिक्षण स्मरणीय है ।
अथोध्या भगवान् ऋषभदेव, सत्यवर्त्ती राजा हरिश्न्द्र ओर पुरुषोतम रामचन्द्र की जन्म-
भूमि होने के कारण भारत की समस्त नगरियों में पूज्या है । सम्मेतशिखर का महत्त्व
आज इसीलिये है कि उसके ऊपर २० जिनेश्व॑र भगवान् मोक्षघ्म पधारे थे। शर्नुजय,
वदाचल और गिरनार तीर्थों का महत्व का कारण यही है कि इनके ऊपर ऐसे
कल्याणकारी महापुरुषों की प्रतिमायें भव्य मद्रों में प्रतिष्ठित हैं, जो दशेकों को
आनंद, भक्तो को शान्ति और साधुओं को अवलंब प्रदान करती ই । इस प्रकार कै
उदाहरण ही अगर देने का संकस्प कर लिया जाय तो समस्त भूमि सी अगर पत्र
बनाली जाय तो भी वह अपयोप्त ही रहेगी। संसार का प्रत्येक देश अपने ऐसे ही
महापुरुषों के पीछे अन्य देशों के बीच गौरव और प्रतिष्ठा आज तक प्राप्त करता
चला आया है। भरत्येक देश का प्रत्येक भ्रान्त अपने ऐसे किसी न किसी महापुरुष
के पीछे अन्य श्रान्ता में अपनी विशेषता आज तक रखता चला आया है। इसी
“प्रकार नगर, पुर और प्राम भी अपने ठेते सुपुत्रं के पीठे धन्य चौर सफल जीवन
होते आये हैं। कुल, ज्ञाति और समाज तथा गष्टू भी ऐसे ही महापुरुषों के पीछे
उत्तम, संसृत सभ्यः इत्रत और गौरवशाली तथा प्रतिष्ठित रहे हैं। ये जगत् के
सूरज हैं, जिनसे जगत् आज भी जगमगा रहा है । दुभोग्य हम अन्धो का है कि
हम आज इनके जगमगाते प्रकाद को नहीं देख रहे हैं. और उसका परिणाम हमाग
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