भारतीय पुरालिपि | Bhartiya Puralipi

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Bhartiya Puralipi by राजवली पांडे - Rajbali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतवर्ष मे लेखन-कला की प्राचीनता ९ मूल ग्रस्थो का श्रग नहीं माना जा सकता है ।' इनमे लेखन सम्बन्धी 'लिख', 'लेख', 'लेखन', 'लेखक' आ्रादि अ्रनेक शब्द भरे पडे हैं। इस पर बूलर' का कथन है, “यद्यपि महाकाव्यो के प्रमाण केवल उचित सतकंता से स्वीकार किये जा सकते है, फिर थी इसका निराकरण नहीं किया जा सकता कि उनके लेखन श्रौर लेखक सम्बन्धी शब्द झ्रति प्राचीन है ।”-महँभिरत की भूमिका मे कहा गया है कि महा- भारत के रचयिता व्यास ने गणेश (जो स्पष्टत लेखन मे निपुण मानव ही थे) को श्रपना लेखक बनाया था]. (२) कौटिल्य* का अर्थशास्त्र ब्नाहटमण-साहित्य का दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । अथेशास्त्र का समय अशोक के शिलालेखो के पूर्व ई० पु० चतुर्थे शतक है । इसमें लेखन के विशिष्ट श्रौर प्रत्यक्ष सकेत हैं जिनमे से कुछ नीचे उद्धृत किये जाते है । (क) वृत्तचौलकर्मा लिपि सख्यान चोपयुब्जीत 1१/५/२। (चूडाक्म के उपरान्त लेखन श्रौर गणना सीखनी चाहिये) । (ख) पब्चमे मन्त्रिपरिपदा पत्रसम्प्रेषणेन मन्त्रयेत 1१/१९/६ । (पॉचवे प्रहर मे राजा को पत्र-सम्प्रेषण द्वारा मत्त्रिपरिषद्‌ से मन्त्रणा करनी चाहिये) । (ग) सज्ञालिपिभिश्चारसज्चार कुर्यू 1१/१२/५८ । (सज्ञा और लिपि के साथ श्रपने गुप्तचरो को भेजना चाहिये) । (घ) अमात्यसम्पदोपेत सबवेसमयविदाशुग्रन्थश्चार्वेक्षरो लेखवाचनसमर्थों लेखक” स्यात्‌ 1२/९/२८५८। (लेखक. लिखने श्रौर पढने मे समर्थ तथा रचनाकुशल होना चाहिये) । (३) सूुत्र-साहित्य *--श्रौत, गृह्य और घर्म सुत्रो--का समय ईसा पूर्व की दूसरी श्र आ्राठवी शताब्दियों के बीच रखा गया है । सुत्र-साहित्य भी लेखन के व्यापक प्रचार के प्रमाण उपस्थित करता है। उदाहरणार्थ वसिष्ठ घर्मसुत्र * मे व्यावहारिक प्रमाण के रूप मे लिखित पत्रको का उल्लेख है । साथ ही साक्ष्य के प्रकरण मे एक सुर किसी प्राचीनतर ग्रन्थ या प्राचीन परम्परा से उद्धृत किया गया है । न्न््टी १. वही, भाग १। २. इण्डियन पेलियोग्रॉफी, पृ० ४। ३. झआादि पवें, १/११२ ॥ ४. कौटिल्य ई० पु० चौथी शती मे चन्द्रगुप्त मौय॑ का प्रधान मत्री था । ५. विण्टरनिट्ज, ए हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, भाग १ । ६. रदा१०१४-१४।




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