अर्थविज्ञान और व्याकरणदर्शन | Arthavigyan Aur Vyakarandarshan

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Arthavigyan Aur Vyakarandarshan by डॉ. कपिलदेव द्विवेदी आचार्य - Dr. Kapildev Dwivedi Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(২২১) খহপ্সজ হ্যা ক্সামব বাহনা ই।ভলাহি म्डके शन्यौमे श्रन्त ঈ यदो निवेदन करना है कि :-- रद विद्यंसोषनुरडन्दु चित्तओोने: प्रसादिभिः | सम्त३ प्रयग्रिवाक्यानि णडन्ति हानसूयदःओं श्वागमपरयरेचाहे नापवायः स्वलनपि। न रि सदर््मना पच्छुन्‌ स्वलिवष्दप्पशेयते ॥ ( एलोहवार्तिक, प्रन्षकारप्रतिश रलोक ३ और ७ )।




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