बुद्ध चरित्र | Buddh Charitra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूचना भ
इश्य समाप्त हुआ । वह जल फिर जांवों से पूर्ण हुआ, और
उसी जल पर दष्ट की स्थापना हुई । हे कल्याणी, इस तरह
असंख्य जलचर जंतुओं के साथ मैंने जल में विचरण और
मत्स्य-अवतार के द्वारा वेदों का उद्धार किया | उसके वाद, अन्य
समय, सागर के भीतर, मे कच्छप के रूप से प्रकट इच्मा ।
पीठ पर मंदराचल-सहित पृथ्वी को धारण किया । फिर
वाराह-अवतार लेकर प्रलयकाल में दाँत पर पृथ्वी को उठा-
कर सागरतल से ऊपर लाया । है पुत्री, फिर त्रिलोक शौर
चौदह भुवन की रचना इई । उस समय कौन जानता था
कि फिर इस सृष्टि का विनाश संभव है ? उसके उपरांत
दैत्यगण तप करके बली इए । उनके प्रताप से न्याकुल देव-
गण भय के भारे कौपने कगे । देवगण स्वर्ग से भाग गए,
ओर किसी तरह दैत्यों को हरा नहीं सके । तब उन्हें उनका
अधिकार दिलाने के लिये मेने भयानक नृर्सिह-रूप धारण
किया ।
दया--प्रभु, में आपकी नर-लीला सुनना चाहती ह । दे
नारायण, आप समय-समय पर मनुप्य-शरीर धारण करके
पृथ्वी पर क्यों बिचरते हैं ? आपके किस अवतार में किस
.बल का अयोजन हुआ :£ हे निरंजन, में यह सब सुनने के
लिये श्त्यंत उत्क॑टित दो रही हँ । मैने प्रलयकाल का सागर
नहीं देखा, और इसी कारण प्रलयसागर मे आपने जो लीलाएँ
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