ज्ञानपीठ - पूजांजलि | Gyanpeeth - Poojanjali

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Gyanpeeth - Poojanjali by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ ज्ञानपोट-पूजाञ्जलि समय किसी प्रकारकी सवारीका उपयोग नहीं करता । पैदल ही विहार करता है। इन नियमोंके सिवा और भी बहुतसे नियम हैं जिनका वह संयमकी रक्ताके लिए, भले प्रकार पालन करता है। २ आर्यिकाओंके विशेष नियम उक्त घर्मका समग्ररूपसे आर्यिका भी पाछन करती हैं। इसके सिवा उनके लिए जो अन्य नियम बतलाये गये हैं उन्हें मी वे आचरणमें लाती हैं। वे अन्य नियम ये हैं--वे परस्परमें एक दूसरे के अनुकूल होकर एंक दूसरेकी रक्षा करती हुई रहती द । २ रोप, वैरभाव ओर मायाभावसे रदित दोकर लज्जा और मर्यादाका ध्यान रखती हुई उचित आचारका पालन करती हैं। ३ सूत्रका अध्ययन, सूत्रपाठ, सूत्रका श्रवण, उपदेश देना, बारह अनुप्रेज्ञाओंका चिन्तवन, तप, विनय और संयमम सदा सावधान रहती ই। ४ शरीरका संस्कार नदीं करतीं । ७. सादा विना रंगा हुआ वस्र रखती द । ६. जाँ गृहस्थ निवास करते दै उस मकान आदिमे नहीं उहरतीं | ७. कमी अकेली नहीं रहतीं। कमसे कम दो तीन मिलकर रहती हैं। ८ बिना प्रयोजनके किसीके घर नहीं जातीं। यदि प्रयोजनवश जाना ही पड़े तो गणिनीसे अनुज्ञा लेकर मिलकर ही जाती हैं । ६ रोना, बालक आदिको स्नान कराना, भोजन बनाना, दाई का कार्य और कृषि आदि छुह् प्रकारका आरम्भ कर्म नहीं करतों। १० साधुओंका पाद-प्रज्ञाऊन व उनका परि- माजन नहीं करतीं । ११ बृद्धा आर्यिकाको मध्यमें करके तीन, पाँच या सात आर्यिकाएँ मिल कर एक दूसरेकी रक्षा करती हुई आहारको जाती हैं। १२ आचार्यसे पाँच हाथ, उपाध्यायसे छुह हाथ और अन्य साधुओंसे सात हाथ दूर रह कर गौं-आसनसे बैठकर उनकी वन्दना करती हैं । जो साधु और आर्यथिकाएँ इस आचारका पालन करते हैं वे जगते पूजा ओर कीर्तिको प्राप्त करते हुए अन्तमें यथानियम मोक्ष सुखके भागी होते दै।




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