कार्ल मार्क्स | Karl Marks

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Karl Marks by स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ काले লাল ध्याने क्रानून को तरफ जाता था.1- चौर इन दोनों से बढ़- कर मँ दर्शनशाञ्च के अध्ययन मे लगना चाहता था । ` ` ८न्‌ विभिन्न विषयों का अध्ययन करने के फलस्वरूप आरम्भ में मुझे अनेक वार रात-रात भर जागना पड़ा, और मानसिक तथा शारीरिक उत्तेजना भी बहुत वढ़ गई 1 पर अन्तमं मैने देखा कि इस तरद के काम से सुमे विशेष लाम नदीं हा । इसके कारण मेँ प्राकृतिक सौन्दयं, ललित- कला और सामाजिक आनन्द से प्रथक्‌ हो गया और प्रसन्नता को मैंने ठुकरा दिया । मेरे शरीर पर भी इसका असर खराब पड़ा और डाक्टर ने मुझे कुछ दिन देहात में रहने की सलाह दी । “देहात मे रहते हुये मैंने एंक निवन्ध दर्शनशास्त्र के विकास पर लिखा। इसके लिये मुभे देगल के दशैन- शास्त्र का अध्ययन करना पड़ा । फल यह हुआ कि मैं उसी चीज का उपासक वन गया जिससे अब तक घृणा किया करता था। यह एक ऐसी वात थीं जिससे सुमे वड़ा मानसिक कष्ट हुआ। इसी समय जेनी की बीमारी का समाचार पाकर मेरी चिन्ता और भी वढ़ गई। इसका प्रभाव भेरे स्वास्थ्य पर बुरा पड़ा ओर में वीमारहों यया। “बीमारी से छुटकारा पाने पर मेंने अपनी तमास कविताओं और अधूरी कहानियों को जला--डाला। इस बीच में मैंने हेगल और उसके शिक्यों के अधिकाँश प्रथो




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