जीवन - साहित्य | Jivan - Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९ जन्माए्टमी
पश्चाचाप कर और श्रीहरि की शरण में जा।” मानी कंस ने
तिरस्कारयुक्त दाप्य के साथ उत्तर दिया कि; सम्राट् समरभूमि से
पराजित हुए बिना पश्चात्ताप नहीं करते |? (तथास्तु कह कर
निराश हो नारद चले गये । कस ने सोचा, चव तक जो सम्राट.
सफल न हुए, इसका कारण है उनकी असावधानता, उन्हे पूरी
तरह सावधान रहने का ज्ञान न था । यदि से भी गाफिल रहा तो
मुझे भी पराजय स्वीकार करना पड़ेगा | पर इसका ङु अन्देशा
नही । वीर पुरुष तो सदा विजय के लिये ग्रयत्न करता है, किन्तु
पराजय के लिये तैयार रहता है । हार जाना बुरा नही, किन्तु धर्म
के नाम पर वशीभूत हो जाने में अकीति है । धस का साम्राज्य
साधु-सन्त, वैरागी ओर देव-नाह्यणो को मुबारक हो, मे तो
ठहरा सम्राट । मैं तो एक शक्ति को ही पहचानता हूँ ।
कंसने क्रूर हो कर वसुदेव के सात निरपराध वालको का
वध किया । छृष्ण-जन्म के ससय ईश्वरीय लीला चली ओर श्री-
ऊृष्ण भगवान की जगह कन्या-देहधार शक्ति कंस के हाथ लगी।
उसे कंस ने जमीन पर पछाड़ा, परन्तु शक्ति से कही शक्ति थोड़ी
ही मर सकती थी ? वसुदेव ने श्रीकृष्ण को गुप्त रूप से गोकुल
से रक्खा, किन्तु इेश्वर को कोई वस्तु गुप्त रखना खीकार न था ।
इंश्वरको प्रसिद्ध हो जाने का कौन सा भय था (अंग्र ० 5९८०४९८८५७)
शक्ति ने अद्टद्दास कर के भोचक कंस से कहा, तिरा शत्र तो
गोकुल मे दिन दूना ओर रात चौगुना चद रहा है |” मथुरा से
गोकुल वृन्दावन जहुत दूर नहीं है, चार पोच कोस भी नही है।
कंस ने श्रीकृष्ण को सार डालने के लिए जितने हो सके, प्रयत्न
किये । चिन्तु वह् यह् जान ही न सका कि श्रीकृष्ण का मरण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...