रूपक रहस्य | Rupak Rahasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रूपक का विकास ७ लित है । हमारे देश मे वह्‌ करष्एलीला ओर रामलीला चाति के रूप में वर्त्तमान है । ये लीलाएँ साधारण स्वॉर्गों का परिवत्तित और विकसित रूप हैं ओर इनमें भी रूपके कीटका रहस्य छिपा हुआ है । स॒तार की भिन्न भिन्न जातिया के ना व्य-साहित्य का प्राचान इति हात मी यदी वतलाता है कि नाल्य-साहिव्यकी उत्पत्ति वास्तव में नृत्य से, और उसके ही साथ ही साथ सगीत से भी हुई है। महृष्य जब बहुत प्रसन्न होता है तब नाचने ओर गान लगता है। जब ह किसी का अत्यन्त अधिक प्रसन्नता का परिचय कराना चाहते हैं, तत्र हम कहते हैं कि वह मारे खुशी के नाच डठा! | दूसरो के आदर-सत्कार ओर असन्नता के लिये भी उसके सामने नाचने ओर गाने की प्रथा बहुत पुरानी है হুলাই यहीं पार्वती के सामने शिव का ओर ब्रक्ञ की गोपियों के साथ कृष्ण का नृत्य बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि हजग्त दाऊद भी ईसा मसीह के सामने नाचे थे | किसी माननीय ओर प्रतिष्ठित अभ्यागत के आदर के लिये दृत्य-्गीत का आयोजन करते की प्रथा अब तक सम्य और असब्य सभी जावियों में प्रचलित है । प्राचीन काल में जब्र योद्धा लोग विजय प्राप्त करके लौटते थे, तब वे स्वयं मी नाचते-गाते थे और उनका सत्कार करने के लिये नगर- निवासी भी उनके सामने आकर नाचते-गाते थे | कभी कभी एसा भी होता था कि युद्ध-क्षेत्र में बीर और योद्धा लोग जो कृत्य करके आते थ्रे उन कृत्यों का नाट्य भी दृत्य-गीत के उत उत्सब्रों के समय हुआ करता था| स्तरों, ओर विशेषतः बीर तक्तो के चदेश्य से नाचने की प्रथा बरमा,' चीन, जापान आदि अनेक देशों में प्रचलित थी । जो योद्धा देश, जाति अथवा धर्म के लिय अनेक प्रकार केर सहकर प्राण देते थे, उनकी स्मृति बनाए रखने का उस दिनो यह एक साधन माना जाता था। उक्त देशा के नाटकों का आरस्भ इन्हीं नृत्यो से हुआ हे, क्योंकि उन देशों के निवासी उस छूत्य के समय मॉति भाँति के चेहरे लगाकर स्त्रॉग बनाते थे ओर হন নাহ सतकों के बोरतापूर्ण ऋृत्यां का नाख्य करते थे। उन स्ृत्यों में कहीं-




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