अरिस्तु की राजनीति | Aristu Ki Rajneeti

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Aristu Ki Rajneeti by श्री भोलानाथ शर्मा - Shree Bholanath sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भू ७ मकर यूनानी चिन्तन की धारा में अरिस्तू का महत्त्व ग्रीक दर्णन के किसी भी इतिहास को पढ़ने पर यहू पता चल सकता हैं कि यूनानी चिन्तन को धारा में सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान साँ क्रातेस, प्लातोन और अरिस्तू की गुरू-णिप्य-परम्परा का है । एक भारतीय लेखक ने तो यहाँ तक कह डाला है कि इस प्रकार के श्रेप्ट चिन्तकों की तीन पीढ़ियाँ अन्यत्र सारे संसार में कहीं नहीं मिलतीं 1 संभवतया बहू परादयर, व्यास और की परम भागवतों वाली पिता, पुत्र, पौच की तीन पीढ़ियों से अपरिचिंत हैं, अन्यथा ऐसा न लिखते । तथापि इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि यदि यूनानी दर्जन में से सॉक्रातेस, प्लातोन और अरिस्तू को निकाल दिया जाय तो कुछ भी कोप नहीं रह जाता । सॉँकातेस से पूर्व का चिन्तन यूनानी दर्धन की पूर्व-पीठिका है और अरशिस्तू के पदचात्‌ का चिन्तन निर्वाण की ओर अग्रसर होते हुए दीपक की टिमटिमाहट है. जो प्ठोतिनस की रचनाओं में निर्वाण के पूर्व अन्तिम वार भड़ककर वुझ जाती है | फिर भी इन तीन गुरु-शिप्यों से संसार को जो प्रकादय मिला है वह मानव की अमूल्य निधि है । इनमें से सॉक्रातेस ने तो कुछ लिखा नहीं । उसकी तुलना तो कवीरदास से की जा सकती है जिन्होंने कहा था कि “मसि कागद छूवों नहीं कलूम गह्यों नहि हाथ” । पर इसमें भी कोई नहीं कि एक समय समग्र अथेन्स नगर उसके बार्तालापों से आन्दोलित हो उठा था । अपनी अस्तरात्मा की पुकार का अनुसरण करते हुए उसने अन्य सब व्यवसायों को लात मार सत्य, सदाचार और न्याय इत्यादि की खोज को ही अपने जीवन का लक्ष्य वनाया । इस खोज में उसने निर्ममतापूर्वक वड़े वड़ों की धघारणाओं का खोखलापन उद्घाटित किया । अन्त में उसको अपने विचार-स्वातंत्र्य का मूल्य चुकाना पड़ा । अथेन्स ने अपने आलोचक को क्षमा नहीं किया । लोक ' न्यायालय ने सॉक्रातेस के दारीर को विप का प्याछा पिछाकर मिटा दिया पर उसके सत्यात्वेपण ने उसको अमरता प्रदान की । मनुस्मृति में ब्राह्मण के लिए जो आदेश निम्नलिखित दछोक में मिछता है वह सॉक्रातेस के जीवन में अक्षरदा: चरितार्थ हुआ 1




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