अरिस्तू की राजनीति | Aristu Ki Rajniti

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Aristu Ki Rajniti by श्री भोलानाथ शर्मा - Shree Bholanath sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरिस्तू की राजनीति द ३ तथापि यह बात निविवाद थी कि अरिस्तू भी अपने गुरु और दादागुरु की भाँति विलक्षण प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति था । यूनानी राजनीति और दर्शन की किसी पुस्तक को उठाकर देखिये तो जहाँ आरंभ में भूमिका भाग में इन पुस्तकों के विद्वान लेखक यूनान की प्रतिभा की तुलना प्राच्य देशों की प्रतिभा से करते पाये जायेंगे वहाँ यही कहते मिलेंगे कि यूनानी मस्तिष्क अथवा बुद्धि की विशेषता उसकी युक्तियुक्तता अथवा विवेकपरायणता है । अर्थात्‌ यूनानी बुद्धि लौजिकल है, रैशनल है। पर जब हम उसी यूनानी मस्तिष्क के व्यवहार को देखते हैं तो हमको इन मनीषियों का दावा निराधार प्रतीत टोता है। साक्रातेस को अथेन्स के न्यायालय द्वारा विषपान द्वारा प्राणदण्ड दिया জালা, प्लातोन को दासरूप में बेचना और अरिस्तू जैसे प्रकाण्ड एवं प्रतिभाशाली विद्वान को अकादेमी का प्रधान न बनाकर स्प्यूसिप्पस जेसे साधारण व्यक्ति को यह पद देना, अलेकज़ाण्डर का विश्वविजय की मह्त्त्वाकांक्षा धारण करके अपने पर भी संयम न रख सकना एवं इसी कारण अकाल कालकवलित होना--इत्यादि कितने ही प्रमाण यूनान के इतिहास में से ऐसे प्रस्तुत किये जा सकते हैं जो यह स्पष्ट सिद्ध करते हैं कि व्यक्तियों की बात दूसरी है, सामूहिक रूप से यूनानी प्रतिभा विवेकशील नहीं थी। तभी तो अरिस्तू को अलेकज़ाण्डर की मृत्यु के पश्चात्‌ (अथेन्सवासी कहीं फिलासफी, दर्शन, के प्रति दूसरी बार अपराध न कर बैठें इसलिए ) अथेन्‍्स को त्याग देना पड़ा । यद्यपि अरिस्तू को अपने विद्यामातृमन्दिर--अकादेमी--में अभीष्ट सम्मान प्राप्त नहीं हुआ, उसने अपने अध्यवसाय से तथा अपने शिष्य अलेकज़ाण्डर और मित्रों की सहायता से एक दूसरा विद्यालय स्थापित किया और वहाँ पर एक नवीन वैज्ञानिक शोध की प्रक्रिया आरंभ की । जीवन के अन्तिम २० वर्षों में उसने अपने विविध विषयों के ग्रन्थों के रूप में प्रथम ज्ञानकोष का निर्माण किया । इस समग्र उद्योग से उसके द्वारा वह ज्ञानज्योति जगाई गई जो सहस्रों वर्षों तक पाइचात्य देशों में मानव के जीवन-पथ को आलोकित करती रही । पाइचात्य जगत्‌ में आज जिस सभ्यता का बोलबाला है उसकी जड़ें प्राचीन यूनान ` की सभ्यता में निहित हैं । यह यूनानी सभ्यता अरिस्तू की प्रतिभा में अधिकतम आत्मचेतना को प्राप्त हुई । अतएव आन के पाइचात्य जगत्‌ को (रूस के सहित) समझने के लिए अरिस्तू को समधिक मात्रा में समझना आवश्यक है । आज का युग




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