मालापती | Maala Pati

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Maala Pati by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालापती ] १७. है 1 बह निपाहिये कै साधारण उपदार स्वोकार फर वाको दूतकारती सौटा देती है कि प्रपने परिवारों के लिये ले जावें। हँस कर कहती है कि उसे किसी के दीवो-वच्चे का हक छीतने का प्रधिकार नहीं है। भगवान ने उसे बहुत दिया है, भ्रधिक फो घाहना उसे नही है । मेरी झभाँसों के भागे उस मालापती का विशाय व्यक्तित्व नाच उठा । मेंगे उसे प्रामंत्रित नहीं किया। बह स्वयं ही मेरी श्रतिथि बन गयी।॥ उसका बह धाग्रह मे रामझ न पाया । झ्ाज यह सामूहिक जीवन से दूर हट कर एफ व्यक्त के पास प्रा रहो थी । वह क्या কর্মী লী নয়া सवाल पूँंधेगी ? पया में उत्त मार को संमालने की क्षमता रखता था ? मैने घड़ी देसी, भ्राठ यज गयाया। चौकीदार को एकः प्याचा चाय लाने का भ्रादेश देकर मे कमरे के भोतर से भाराम कुर्सी उठा कर बाहर बरामदे में ले সানা সী उस पर लघर गया । चौकीदार गरम चाय लाया तो शरोर में नई चेतना उठो। वह बोला, 'सा'ब झाप भीतर सो जायें । वह तीन बजे से पहले शायद हो भावेगो । भाज धिपाहियो ने दो बकरे मारे है । वह खा पो कर ही भावेगो । झ्राप खाना सा लें, उसमे वादा किया है तो जरूर भावेगी । वेसे कई साहवों ने युलवाया पर उसने सभी को दुतकार कर संदेश भेजा कि गाना सुनना है तो वही चले भावें | वह किसी को दासी नहीं हैं ।” में झाँसें मूंद कर न जाने बया सोच रहा था। चौकीदार ने बताया कि दस वजन रहा है तो मैने उससे कहा कि खाने का सामान मेज पर सजा कर रख दे श्लौर नींद भ्रा रही हो तो सो जाय । पर उस बूढ़े ने बताया कि उसे नोद बहुत कम भ्राती है और फिर रसोई के कमरे में चला गया । भ वाहर बुरसौ पर उसो मौति लधरा रहा । मोतर्‌ चौकोदार हुमा गु्गुढ्ा रहा था श्रौर मैने एक-पूरो डिविया सिगरेट की फूंक डाली थी । मुझे झआलस्य झा रहा था, भतएवं विवश होकर कमरे के भीतर पहुँच कर पलंग पर सेट मया । बड़ी देर तक में मालापतो पर सोच, उसको नई फल्पना कर अंत में सो गया।




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