श्री राइय देवसिक प्रतिक्रमण सूत्र | Shri Raiya Daivsik Pratikraman Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिद्ध भगवान्‌ के श्राठ गुण जिन्होंने झ्ाठ करों का सर्वेथा क्षय कर लिया है, मोक्ष प्राप्त कर लिया है प्रौर जन्म-मरण रहित हो गये हैं उहे सिद्ध कहते हैं । इनके आठ गुरा हैं-- १ अनत्तज्ञा--ज्ञानावरणीय कर्म सर्वथा क्षय होने से केवलज्ञान प्राप्त होता है, इससे सब लोकालोक वा स्वरूप जानते है । २ अनात दर्शन--दशनावरणीय कर्म का सवधा क्षय हो जाने से केवल दशन प्राप्त होता है, इससे लोकालोक के स्वरूप को देखते हैं । ३ अव्यावाध सुख--वेदनीय कर्म का स्वेथा क्षय होने से सब प्रकार वी पीडा रहित मिरुपाधिपना प्राप्त होता है। ४ अनन्त चारित्र--मोह्‌ीय कम सवथा क्षयहोनेसे यह्‌ गण সাল होता है । इसमे क्षायिक सम्यक्त्व श्रौर ययाष्यात चारि का समावेश होता है, इससे सिद्ध भगवान्‌ श्रात्मस्वभाव मे सदा श्रवस्थिति रहते हैं । वहाँ यही चारित्र है ॥ ५ अक्षय स्थिति--पश्रायुप्य कर्मे के क्षय होने से कभी नाश न हो (जम-मरण रहित) ऐसी আসল स्थिति प्राप्त होती है। सिद्ध की स्थिति षीभ्रादि है मगर भरन्त नही है, इससे भादि भनन्त कहे जाते हैं । ६ अदरुपी--नामकम के द्षय होने से वण, गध, रस অনা তা रहित होते हैँ, वयोकि शरीर हो तभी वर्णादि होते हैं। सिद्ध के शरीर नही है इससे झरूपी होते हैं । ও क्षगुरुलछु--योत्र फर्म के क्षय होने से यह ग्रुग्ग प्राप्त होता है, इससे भारी-हल्वा भ्रथवा ऊच-मीच का व्यवहार नही रहता । ८ अनन्तवीर्प--अतराय कमं वा क्षय दोन से धनन्त दान्‌, भ्रमन्त लाभ, भनत भोग, श्रनन्त उपभोग तया भ्ननन्तवौयं प्राप्त होता है।




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