श्री राइय देवसिक प्रतिक्रमण सूत्र | Shri Raiya Daivsik Pratikraman Sutra
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिद्ध भगवान् के श्राठ गुण
जिन्होंने झ्ाठ करों का सर्वेथा क्षय कर लिया है, मोक्ष प्राप्त
कर लिया है प्रौर जन्म-मरण रहित हो गये हैं उहे सिद्ध कहते हैं ।
इनके आठ गुरा हैं--
१ अनत्तज्ञा--ज्ञानावरणीय कर्म सर्वथा क्षय होने से केवलज्ञान
प्राप्त होता है, इससे सब लोकालोक वा स्वरूप जानते है ।
२ अनात दर्शन--दशनावरणीय कर्म का सवधा क्षय हो जाने से
केवल दशन प्राप्त होता है, इससे लोकालोक के स्वरूप को देखते हैं ।
३ अव्यावाध सुख--वेदनीय कर्म का स्वेथा क्षय होने से सब
प्रकार वी पीडा रहित मिरुपाधिपना प्राप्त होता है।
४ अनन्त चारित्र--मोह्ीय कम सवथा क्षयहोनेसे यह् गण
সাল होता है । इसमे क्षायिक सम्यक्त्व श्रौर ययाष्यात चारि का
समावेश होता है, इससे सिद्ध भगवान् श्रात्मस्वभाव मे सदा श्रवस्थिति
रहते हैं । वहाँ यही चारित्र है ॥
५ अक्षय स्थिति--पश्रायुप्य कर्मे के क्षय होने से कभी नाश न हो
(जम-मरण रहित) ऐसी আসল स्थिति प्राप्त होती है। सिद्ध की स्थिति
षीभ्रादि है मगर भरन्त नही है, इससे भादि भनन्त कहे जाते हैं ।
६ अदरुपी--नामकम के द्षय होने से वण, गध, रस অনা তা
रहित होते हैँ, वयोकि शरीर हो तभी वर्णादि होते हैं। सिद्ध के शरीर
नही है इससे झरूपी होते हैं ।
ও क्षगुरुलछु--योत्र फर्म के क्षय होने से यह ग्रुग्ग प्राप्त होता है,
इससे भारी-हल्वा भ्रथवा ऊच-मीच का व्यवहार नही रहता ।
८ अनन्तवीर्प--अतराय कमं वा क्षय दोन से धनन्त दान्, भ्रमन्त
लाभ, भनत भोग, श्रनन्त उपभोग तया भ्ननन्तवौयं प्राप्त होता है।
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