बाहर भीतर | Bahar Bhitar

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Bahar Bhitar by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ कहानीकार का वक्तव्य अध्यापक गुलाबराय जसे पुरन प्रकाण्ड अध्यापको तके को समालोचना-कषे्रमें मै दयनीय समता हूं । तब नये जआलौचको की बात तो मै क्या कटू । डा० हजारी- प्रसाद द्विवेदी का 'हिन्दी साहित्य का इतिहास पढ़कर मैने उन्हे लिखा था, 'या तो आप बाणभटु कौ आत्मकथा क लेखक है या इस हिन्दी साहित्य के इतिहास' के | ये दोनो रचनाए एक ही पुरुष की नही हो सकती ।' 'बाणभट्ट की आत्मक्था' में जितनी विलक्षण साहित्य-गरिमा है उनका हिन्दी साहित्य का इतिहास उतना ही बोगस है। यहा दो बातों की ओर मैं पाठकों का ध्यान और आकर्षित करूगा। एक तो यह कि समालोचकगण नये साहित्य को न पढ़ते है, व उसकी खोज-जाच की तक- लीफ उठाते है । खास कर अध्यापकवर्ग में यह आलस्य-भाव अधिक रुढ़िबद्ध है। अपूने परिश्रम से बचने के लिए वे पुरानी लकीर ही पीठते रहते है। इसका परिणाम यह होता है कि वे नई पीढ़ी को साहित्य के आधुनिकतम विकास से वचित रख रहे हैं, तथा साहित्य और साहित्यकार के वास्तविक स्वरूप से पृथक्‌ एक कृत्रिम और मनमाना अप्रामाणिक स्वरूप उनके सम्मुख रख रहे है। मैं तो इसे अक्षम्य अपराध समभता हु । उदाहरणस्वरूप मैं अपनी ही कहानी' की चर्चा करूगा । 'दुखवा मे कासे कहू कहानी मैने सन्‌ १७ के लगभग लिखी थी जिसे आज तेतालीस वषं बीतते है । परन्तु मेरी सर्वश्रेष्ठ कहानी कहकर आज मी वही कहानी कालेजो के पाठ्य कहानी-सग्रहों भे ली जाती रही है। आज के तरुण इसे मेरी प्रातिनिधिक सर्वेश्रेष्ठ कहानी समझकर पढ़ते है । इनके पिताओ ने भी पढी थी और शायद इनकी सन्‍्तति भी पढ़ेंगी । तब कया मैं चालीस साल, अब तक घास छीलता रहा ? आज मेरी कहानियो की संख्या साढ़े चार सो से ऊपर पहुच चुकी है। अब जो कोई मेरी इस कहानी को, जो उस समय' मैंने लिखी थी, जब हकीकत में मेरे साहित्य का बालकाल था, मेरी सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कहानी कहता है, वह निश्चय ही मूढ पुरुष है । कहानियों के चुनाव में चयनकर्ताओ और आलो- चको का अज्ञान तो खेर है ही, इससे भी खराब बीत गुटबन्दी है। गुटबन्दी की प्रचारात्मक श्रवृत्ति ने हमारे साहित्य के भावी विकास को बहुत अधेरे मे डाल दिया है। आवश्यकता इस बात की है कि एक निष्पक्ष विद्वन्मण्डल हिन्दी की सर्ब- श्रेष्ठ कुछ कहानियो का चुनाव करे और वे ही व्याख्या-सहित' नये पाठकों और विद्यारथियों को पढ़ाई जाएं, तथा पाठकों के समकक्ष उन्हें सही रूप मे उपस्थित না-?




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