प्रतीक मानवता के | Prateek Manavta Ke

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Prateek Manavta Ke by कैलाश कल्पित - Kailash Kalpit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रैक | प्रतीक मानवता के उसने उसका चुम्बन बहुत ही सौभ्य रूप से उसकी निताल्त वर्जनाविह्वोन स्थिति में लिया था । कहीं कोई जोर और जबर्दस्ती नहीं थी, फिर भी वह बारम्वार अपने को आश्वस्त कर रहा था कि उप्तके प्यार का रंग लाल ही है, काला तो नहीं । दो-चार महीने बीतते हैं । उप्तके स्नेह और उप्तके आदर के आवार-व्यवहार अपरिवर्तित हैं । उसका व्यवहार ही ऐसा है कि उसे बात-बात में उसकी प्रशंसा करनी होती) एक दिन वह उसके सामने पंजाबी छोले को एक प्लेट लेकर आईं और वोबीौ--छ'रा इसे खाइये कैसे बने हैं? उसने द्वाथ में प्लेट लेकर तुरन्त एक चम्मच छोले अपने मुख में रखे और बोला--बाहू, बहुत बढ़िया ! “सच बताइये, मैंने तो आज पहली बार. “--अरी | पहली वार में ही बहुत बढ़िया बने हैं । जी. चाहता है मैं तुम्हें फिर प्यार कर लूँ | बह उसकी यह वात सुनकर एक दम चुप खड़ी रहु जाती है | बहू उसकी ओर थोड़ा-सा बढ़कर पूछता है--क्या मैं एक मिटुठी ले बूँ ? उसके चेहरे पर एक लालिमा दोड़ जाती है, वह मुस्कुराती भी है किन्तु प्रस ही रखी एक साबुन की डिबिया उठा कर कमरे के बाहुर चली जाती है और कमरे के बाहर होते ही कहती है--मैं जरा नहाने जा रही हैं । उसका अस्ताव परोक्ष में अस्वीकृत होता है। उसका सन उसे कचोंदता है ! उसने उससे बहू बात क्यों कही ? उसने अपनी शात्रीतता भी खोई और कुछ पाया भी नहीं। वह उस छोटे से सुख की तत्ाश अब क्यों करता है जिसका हकदार वह वर्तमात परिस्थिति में नहों है ? यद्धि वहू उस सुख का हकदार नहीं वो उसके अन्दर ऐसी भावदाएँ क्‍यों उम्रड़ती हैं ? क्‍या सचमुच उसने अपनी शालोवता खो दी? किब्तु, किन्तु किसी को प यार करने की ललक भी क्या शालीनता खौना है? क्या उसके चुम्बन में शानीनता निहित तदहौं थी ? क्या उसने তত্ব कपोनलों का चुम्बने उसी प्रकार लिया था, जैसा कोई प्रेमी या पति अपने प्रेमावेश में अपनी प्रेमिका या पत्नी का लेता है ? ऐसा तो कुछ वहीं था । उसने उससे मात्र एक वह प्यार भाँगा था जिसे वह यदि बाद तो शाजीनता से निभा दे । वहू अपनी सीमा जानता है । और फिर उसके अपने शरीर में वह क्षमता भी शेष कहाँ जिसे वासना कहा जाता है। उसकी दे क्षमवाएँ क्षीण हो गई हैं अतः यह प्यार समाज में वात्सल्यता का प्यार माना जाना चाहिये, इस प्यार को एक निर्म्र प्यार माना जाना चाट्विए । किन्तु,... किस्तु वह बहुत देर तक एक विचित्र मनःस्थिति में रहा । . स्स्‌ दिन उसे एक पिता की प्रति छाया में उसका प्यार भिता था, आज उसके भनमें उसके प्यार के प्रति यदि कोद शंका जाग गई है तो कया इस शंका को उसके मन का कुष तरह कहा जा सक्ता ! इस आयु में आकर জী उसके मत में स्वाभाविक प्यार करने की जो हुक उठती है उस पर उसका क्या वह है ? यह प्रकृति की यदि स्वाभाविक




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