गीत गरिमा | Geet Garima

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Geet Garima by कैलाश कल्पित - Kailash Kalpit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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আন্দলা কি देवि अपने वाद्य से परित्रय करो दो काव्य के सुर, राम में मैं बजा নাউ, तुम मुझे इस यर्ते के सब गुर बता दो । देवि अपने वाद्य से परिचय करा दों। भाव कैसे जागते है? शब्द दैसे साधते हैं? हृदय की अनुगूज वैसे गीत में निज हालते हैं? प्रीड़ है क्या वीण को, भुरु-मंत्र इसका तुम सिखा दो, देवि अयने वाद्य से परिचय करा दो। साधना, आराधना की विधा ইঁ अवगत मही र्य) भाव, भाषा, व्याकरण के शिल्प का अधिपति नहीं में। मैं तुम्हारा बन पुजारी, कौन से नैवेदच लाऊँ ? तुम्हीं बतलाओ तुम्हारा अध्य मैं केसे पजाऊँ? स्वथं निज अध्यर्थना के श्लोक तुम मुझको सुना दो, देवि अपने वाद्य से परिचिय करा दो। साधना में सुगति दो तुम, सुमति दो चिन्तन-क्षणों सें। मिल सके पहचान मुझको, सम्मिलित हूँ जब गणों में । ग्रहण कर मुझको किसी वरदान का धारक बना दो गात के ढीले पड़े सब तार भेरे झनझना दो देवि अपने वाद्य से परितम कदो! कै ॐ गोत-गरिमा




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