नैतिक जीवन | Naitik Jeevan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati,
श्री रघुनाथ प्रसाद पाठक - Shri Raghunath Prasad Pathak
श्री रघुनाथ प्रसाद पाठक - Shri Raghunath Prasad Pathak
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati
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श्री रघुनाथ प्रसाद पाठक - Shri Raghunath Prasad Pathak
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नेतिक जीवन द ६
हे तभी तो लाप्लास जैसा अनीश्वर वादी दार्शनिक जो धर्म और ईश्वर
को व्यक्ति और समाज के कल्याण के लिये अनावश्यक माना कता था
अपने लम्बे अनुभव के आधार पर दझह बहने के लिये बाध्य हो गया था
कि धरम भाव के बिना न तो रुमांज रुखी बन सकता है और न सम्मानित |
वस्तुतः धमं ही सदाचार की তল आधार शिला होती है जिस पर
खड़ा समाज- का भवन और राज्य सुखी रुमृद्ध और स्थिर रहते हैं ।
राज्य-व्यवस्था का ध्येय व्यवित और समाज का विकास और उनकी
रक्षा करना होता हे। राज्य-व्यवस्था की उत्तमता और रक्षा धर्म और
सदाचार से सुरक्षित रहती है । धर्म से ही शासन को शक्ति प्राप्त होती
कानून में बल आता ओर दोनों का सम्येक संचाल॑न होता है। यदि दराचार
श्रष्ाचार, अन्याय और अत्याचार के कारण राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न
हो जाय तो राज्य का भवन बहुत दिन नहीं टिकता । प्रजा को खला-पिला
कर मोटा ताज्ञा करने वा उसके शरीर को सजा देने से तो काम नहीं
चलता । जस अकार बलिष्ठ शरीर की बिना आत्मिक ओर सांस्कृतिक विकास
के कोई उपयोगिता नहीं होती अपितु वह पर पीड़न का कारण भी बन
जाता हं उसां प्रकार प्रजा के शरीरों को बनाने और उनका भौतिक स्टेन्डड्ड
ऊ जा कर देने मात्र से काम नहीं चलता | काम तब चलता हैं जब शरीर
हष्ट-पुष्ठ और शोभायुक्त होने के साथ-साथ श्रास्मिक बलं श्रौर शोभा से भी
युक्त हो । असाम्प्रदायिक राज्य का परीक्षण करने वाली राज्य सत्ताओं को
इस बात को पल्लें में बाँध लेना चाहिए।
सग।८त धर्म से जिससे साम्प्रदायिकता को मश्रय मिले राजतन्त्र को अछूता
सखा जाय' यह बात बिल्कुल ठीक हे परन्तु साम्प्रदायक्ता के दूरीकरण के
अन्धे जोश में आस्तिकता और नेतिवता का राजतन्त्र से बहिष्कार कर देना
भवकर भुल होता ই | निस््सन्देह धर्म भावना को राजनेतिक कुचक्र का
'हायवार बनाना ओर समाज में तबाही उत्पन्न कर देना बड़ा जघन्य श्मौर
अधार्मिक काय होता हे और जब यह कार्य धर्म के नाम पर धर्म रक्षा. की
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