शरत साहित्य पंद्रहवाँ भाग | Sharat Sahitya Pandrahwan Bhaag

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Book Image : शरत साहित्य पंद्रहवाँ भाग  - Sharat Sahitya Pandrahwan Bhaag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नारीका मूल्य ७ किसी तरह इस बातको अस्वीकार नदीं किया जा सकता कि इस प्रथाका मूल यद इच्छा ही है कि यदि क्रिसी प्रकार उस पतिदीना नारीको उस पार पहुँचाया जा सके, तो उसके स्वामी महादयेके काममे आनेकी बहुत कुक सम्भावना हयो सकती है | और फिर इसके सिवा यह भी देखा जाता है करि जिन समस्त असम्य देजौमे स्वामीकी -मृल्युके साथ खरीक वध होता दै, उनम भी ठेर्गोका यष्टी परम दृढ़ विश्वास होता है। वे लोग भी समझते हैं कि मत व्यक्तिकी आत्मा किसी आसपासकी झाड़ी या पेड़-पैघेपर ही बैठी रहती है, इसलिए, उसके पास उसकी सगिनीकी भी भेज देनेसे उपकार ही होगा । “ लेकिन हम ल्येगोका यह ऐसा सुसभ्य प्राचीन देश है जहाँ आत्माके स्वरूप तकका निर्णय हो चुका था, और ईश्वर्की लम्बाई चौढ़ाई तक पूरी तरहसे नापा जा चुकी थी। तब उस देशके सम्बन्धर्म यह बात बहुत ही आश्चर्यकी है कि बंदे बंढे पंडित लोग भी यह समझते थे और विश्वास करते थे कि ख्रीका वध करके उसे पतिके साथ भेजा जा सकता है! हाँ, यदि यह नारीकी पूजाकी एक विशेष पद्धति हो गई हो, तो बात दूसरी है। पुरु्षनि समझा दिया था कि सहमृता होना सतीका परम धर्म है। मनुने भी कहा है कि पति-सेवाकी छोड़कर स्लीके लिए और कोई काम ही नहीं है | उसने इस लोकसें भी पुरुषकी सेवा की है और परलोकमें भी जाकर वह उसकी सेवा, करेगी । लेकिन इस झंझटमे उन्होंने नहीं पढ़ना चाहा कि वह परलोकमे क पतिकी सेवा करेगी और कितने दिलों बाद करेगी । पुरुष विलम्ब नहीं सह सकता और इसीलिए उसने ख्त्रीके मरणके सम्बन्धर्म कुछ जल्दी करना और कुछ सतर्क रहना आवश्यक समझा । शास्त्रोने कहा है कि नारी केवल मातृत्वके कारण ही पृजनीया द्वोती है, इसलिए, जब मातृत्वका सुयोग ही न रह गया हो, तब उसे लेकर और क्या होगा ! इसके बाद छोटे और बंडे बहुत-से कीर्ति-स्तम्भ बने हैं और कथा-कहानियो तथा दृश्टन्तोमें ज्लीका दाम बहुत बढ़ गया है । पुरुष केवल अपने सुख और सुभीतेके सिवा,--फिर चाहे वह सुख और, सुभीता वास्तविक हा ओर चदि काव्पनिक दही हो,--ओर किसी बातकी ओर दृष्टिपात नदीं करता | केकिन्‌ इस बातको दबाकर वह गर्वपूर्वक प्रचार किया करता है कि ८ जिस देरामे জিরা हँसती सतीं चितापर जाकर बैठ जाया करती थीं और अपने स्वामीके चरण-कमलेकोी अपनी गोदमें लेकर प्रफुल्तित वदनसे अपने आपको भस्मसात्‌ कर दिया करती ्थी--1 ` इत्यादि इत्यादि ।




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