तरुण के स्वप्न | Tarun Ke Swapn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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सुभाष चन्द्र बसु - Subhash Chandra Basu
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देशकी पुकार
है, किसी भी भ्रान्तमें नहीं फैला । बिहार, यू० पी०, सध्य-
प्रदेश, बम्बई देखनेके बाद मुभे यह अभिज्ञता प्राप्त हुई है ।
राष्ट्रीय जीवनके अन्य क्रे अग्रणी न होन
पर भी मेरा हृढ़ विश्वास है कि ख्राज्य संप्रामभें बंगाले-
का स्थान सबसे श्रागे है | मरे मन्म जप मी सन्देह नी
है कि भारत स्वस्य प्रतिष्ठित होगा पौर उसका
भार अधान रूपसे बंगालीकों ही बहन करना पड़ेगा।
अनेक दुख करते है कि काश वे मारवाड़ी या भाटिया
क्यों न हुए ? विन्तु में प्रार्थना करता हूँ कि बंगाली
हमेशा बंगाली ही रहे ।
गीतामें ऋष्णने कहा है “स्वधर्मे तिधन श्रेय: पर धर्मों
भयावहः” ¦ म इसी उक्तिमें विश्वास करता हूँ। बंगालीके
लिये स्वधर्मका त्याग आत्महत्याक्रे समान पाप है। भग-
धाने हमै आर्थिक सम्पद्दा त्तहीं दी, पर हमरे आणौ
सम्पदां गर दी दै) थनके लिये यदि श्राणोकी सस्पवा
खोना पदे तो द घन नहीं चाहिये ।
बंगालीको यह याद् रखना चाहिये कि भारतवर्ष,
भारत ही क्यो, प्रथ्वीपर उसका एक विशेष स्थान है,
ओर उसी स्थानफ्रे उपयुक्त कतंव्स इसके साभने है।
वगाल्लीको स्वाधीनता आप्त करता होगा छोर उसी
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