अँधेरे के बाहर | Andhere Ke Bahar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
रवींद्र प्रकाश - Raveendra Prakash
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वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ५ )
पढ़ियों से इक दी गई । उसे केवल मुणाल को चीख घुनाई दी । यह हो या
হা ই? পীং श्रव उसे उठा लिया गया। मालुम पड़ रहा है कि वह किसी के
कंधे पर भूल रहा है। और एक-दो बार घुटी-घुटी सिसकियाँ सुनाई पड़ रही हैं।
परन्तु यह आखिर क्यों? श्रब उसे मालूम ,पड़ रहा है कि कुछ लोग तेज तेज चले
जा रहे हैं। वह भी जिन्दा लाश सा किसी के कंधे पर ले जाया जा रहा है!
कहाँ जा रहे है? कुछ मातम भी तो नहीं | पूछा जाए | पर मुह तो बन्द है ।
गगर भरु । सुनाई पड़ा-- अ्रगर बोलते की कोशिश की तो गोली सीने के पार
होगी लत !! ग्रौर न जाने क्या क्या ?
है भगवान | यह क्या हो गया ? लग रहा है कि एक प्राथ ऊषर च,
चढ़े जा रहे हैं. जैसे पंत की चोटी पर। फिर नीचे, और नीचे, जैसे रसातल मे
ही चले जाएंगे | कभी कभी बड़े बड़े भटके लगते हैं । जेसे कोई गड्ढे में कदा
हो । धम धम धम । मालुम पड़ता है, एक नहीं, दो नहीं, कई हैं | भ्रब क्या हो ?
चलते रहे, चलते रहे, प्रनवरत, अनपेक्तित, |
लाकर रख दिया, जैसी किसी ढेरी पर बिछझा दिया हो । हाथ-पैर ज्यों के
त्यौ बंधे हैं | भ्ाँखों की पढ़ी खोली जा रही हैं। अधेरे की परतें धीरे-धीरे हट रही
हैं, श्रौर प्रकाश को क्रिरणों, एक साथ प्रवेश पा रही हैं। पढ्ढी खुलने ही मालूम
पड़ा कि निविड़ अ्न्धकार ने आँखें बन्द कर दी हों | फिर श्े: शर्ते पलकों उठाई
धीरे धीरे, सहमी सहमी सी नयन पंखुरिया खोलीं, एक दूसरे को देखा, वहीं थे ।
तेरे भी था, मृणाल भी थी । एकं दूसरे को पाकर सन्तोष हुआ | मु ह बन्द थे ।
ग्राँतों, आँखों में ही कसमें खाई' कि एक साथ ही इस ग्राकस्मिक मुसीबत से
जूफेगे । परवाह नहीं । |
सामने देखा, कोई गुफा जेसी निचली भूमि है, जहाँ एक मशाल जल रहा
है, और भयानक चेहरे इधर उधर व्यंग्य भरी हृष्टि लिए, भ्रहहास करते घुम रहे
हैं। शोर धुनाई पड़ा, प्रा रहे हैं, आ रहे है / इतने में मालुम पढ़ी, भारो कदपां
की आवाज । सभी श्रोर मूक निवेदन छा गया । |
एकं हृष्ट-पृष्ट शरीर । ब्रिजिस और बुश कोट में चुस््त सजा हुआ | गले
में कारतूस को माला, हाथ में दुनाली बच्यूक । चेहरे पर तेज, आँखें शुमार में
छुबी हुई' । उठी हुई नाक, दबे हुए ओोठ । बड़ा गलप्ुच्छदार म्छें। माथे पर
तिलक, बाल पीछे बिखर हुए । भ्रौर एक दुर्दमं नीय भ्र्टृहास । '
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