जीवन जौहरी | Jivan Johree

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Jivan Johree by विनोबा - Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यापार में सल-निश ५ ক ৪ उनका मुझय व्यापार रूडे का था। बन्व में उनकी दृकान थी। ड खरीठकर गेंठे बांवी जाती और उन्हें बेचा जाता । च्यापार में छोभ का बहुत बड़ा हाथ होता है। ভূল भीक व्यापारी यह धंधा करते थे। उन व्यापारियोंनें अविक् कमाई की छाछूच में रू3 में पानी ठेकर गँठें वबवानी झुन्ध की । इससे उन्हें ढो खम दिखा दिए : एक तो कुछ वजन बढ़ जाता था और पानी मारी हुडं ताजी रूह दूसरी रूड़ से लम्बे ताखाली भी दीख पटती थी ताके वह ऊँचे दामोपर व्रिक सके किन्तु उस तरह पानी दिया हुआ माल थोडे समय परचात्‌ अपनी पहली स्थिति में है नहीं आ जाता, अति पानी के कारण कुछ खराब भी हों जात অন্গ মাত खरीदनेवाले विदेशी व्यापारियों को इस चाछाकी का तान हुआ तत्र वे पानी से ब्ढनेवाले वजन और उसत खराब होनेवाली काटिटी का ध्यान रख कम कीमत में माल खगीदने लो | परिणाम यह हुआ कि जो व्यापारी पानी नहीं मारते थे उनका भी माट कम कीमत में ब्रिकनें छा । इस ঘাতি को' बरदाइत ने करने के कारण प्राय सभी व्यापारी पानी मारकर माल बंब्बाने छगे | ओर इस छोम और वेश्मानी का फल बेचारे किसानों को भुगतना पटा | किसानों से कपास कम दातनों मे खरीदी जाने छगी। णती नहीं! मारनेवाले व्यापारी प्रतिस्पवों में व्िकि नहीं सके। जमनाठालनी बजाज की फर्म पानी नहीं मारनेवार्लों में से एक ঘাঁ। स्थिति विपम थी। मुनीमों को चिन्ता यी कि सब के सुकाबले मे हमारी सचा क तक टिकेगी | अन्त में जमनाझलरी लक. “ड শপ পাতি भ শী সি শনি




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