आज के साए | Aaj Ke Saye

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Aaj Ke Saye by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूषिका १९ दिए कई वार लेखक बिस्वी का विधान करता है जो कहानी को यथार्थ भूमि से हटा देते हैं। कविता और कहानी में यहूं अन्तर तो दे हो कि जहाँ काल्पनिक विस्व-विधान कविता में एक चमत्कार छा देता है, वहाँ कहानी को बह कमजोर कर देता हैं । कहानीकार विम्दो के माध्यम से एक माव या विचार को सफलता पूरवेक नमी व्यक्त कर सकता है जब वे विम्व यथार्थ की रुपाइतियों से मिस न संघटन में जोवन के यवार्यं की पहचाना जा सके । जरा भी 'अनकस्विसिंग' होते ही एक मुन्दर सकेत के रहते हुए मी कहानी असमर्थ हो जाती है । कहानी की वास्तविक सामर्थ्य इसी में है कि बड़ी-से-वड़ी बात कहने के लिए भी लेयक को असाधारण या असामान्य का आश्रय न लेना पईे--सापारण जीवन के साधारण मघटन से ही वह विचार की अनुगूज पैदा कर सके । इसलिए कहानी की सहज साकेतिकत्ता रुपकारमक साकेतिकता मे कही अधिक महत्त्वपूर्ण है । कहानी का वास्तविक सकेत चाहानी की सहज गठन से स्वत. उमर आता है। आज़ की हिन्दी कहानियी में “चीफ की दावत्त' और 'दोपद्र का मोजत' जैसी कहानियाँ उदाहरण रूप में रखी जासंकती हैं। चीफ को दावत ' का संकेत माँ के चरित्र के माध्यम से उमरता है और 'दोपहर का भोजन ' में अमावग्रस्त घर की एक सधारण-सी दोपहुर के बणत-माज से । इन दिनों की लिखी कितनी हो और ऐसी कहानियाँ मिल जापेंगी जिनमें कई-कई तरह के सकेत हैं--वे सकेत जो चरित्री की 'मावन्मणिमाओं और उनकी साधारण बातचीत से उमरते हैं, या केवल वातावरण के विधण से, या केवल कहानी के शिल्प या कहने के ढंग से ही । कहानी दे अस्तमिहित सकेत तक मे जाकर जब केवल ऊपरी सतह पर हो उसका अध्यपत किया जाता है, तो कई वार एक बहुत हृत अच्छी व हानी मी साधारण और सपाट-सी श्रतीत होती हैं । दूसरी ओर यदि कहानी में गन नहीं है, तो ऊपरी ढांचे बने कितना ही संदारा अर, से सजा लिया जाय,च हु सही बर्य में कहानी नहीं बन पातों-वह एक नरंटिव या बनकर रह जाती है। कहानी कविता या के गुण से बहासी नहीं दननी, अपने युध से बहानी बनती दै--समीव भर समन मापा में यवापं के प्रामाणिक चित्र प्रस्तुत करते हुए उनके माध्यम




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